जोशीमठ के लिए कौन जिम्मेदार; तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार? जानें पूरा मामला
उत्तर प्रदेश
जोशीमठ 1976 में जब बड़े भू-धंसाव की जद में आया तो तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने नगर को बचाने के लिए मंडलायुक्त की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। लेकिन जोशीमठ को बचाने के लिए कमेटी ने जो तात्कालिक कदम सुझाए दिए उन्हें सरकार ने दरकिनार कर दिया। इसलिए आज 47 साल के बाद जोशीमठ फिर से तबाही के मुहाने पर खड़ा है। इस बार तबाही की आशंका इसलिए बड़ी है कि, तबका यह कस्बा आज एक नगर का आकार ले चुका है।
जोशीमठ, बदरीनाथ, हेमकुंड, फूलों की घाटी, औली जाने और नंदादेवी बायोस्फेयर क्षेत्र में पर्वतारोहण का बेस कैंप है। करीब तीस हजार की स्थायी आबादी वाले नगर में सौ से ज्यादा होटल और होमस्टे हैं। यात्रा सीजन में कई बार यहां ओवरक्राउड की स्थिति बन जाती है। इसलिए नगर पर आसन्न संकट को टाला नहीं गया तो स्थिति बेहद खराब हो सकती है।
1976 में जोशीमठ के भू-धंसाव के लिए तत्कालीन मंडलायुक्त महेश चन्द्र मिश्र की अध्यक्षता में बनाई गई 18 सदस्यों वाली समिति में पदम विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट भी शामिल रहे। भट्ट बताते हैं कि, उनके द्वारा 11 मार्च, 1976 में जोशीमठ में शुरू हो रहे भू-धंसाव पर स्थलीय निरीक्षण कर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को भेजकर तत्काल कारगर कदम उठाने का आग्रह किया था। भट्ट का कहना है कि, इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में 18 सदस्यीय कमेटी गठित की। वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों ने जोशीमठ कर स्थिति का निरीक्षण कर भूस्खलन और भू-धंसाव के कारणों पर रिपोर्ट तैयार की और सरकार को दी थी।
कमेटी ने की थी ये सिफारिशें
● भारी निर्माण कार्यों पर रोक लगे।
● आवश्यक कार्यों के निर्माण के लिए भूमि की भार वाहन क्षमता के अनुसार ही अनुमति दी जाय।
● सड़क व अन्य निर्माण में बोल्डरों को खोदने और विस्फोटों पर रोक लगे।
● नदी किनारे से पत्थरों की निकासी पर रोक लगे।
● जोशीमठ के निचले हिस्से में वनीकरण किया जाए।
● जहां जमीन दरक रही है, उसे योजनाबद्ध तरीके से भरा जाय।
● जोशीमठ नगर में नैनीताल शहर की तरह ड्रेनेज सिस्टम बनाया जाए।