November 27, 2024

एमएसपी गारंटी के लिए देश भर में अभियान चलेगा- त्रिपाठी

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जगदलपुर
किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने को लेकर एमएसपी गारंटी मोर्चा देशभर में अभियान चलाकर किसानों को संगठित करेगा और अपनी आवाज बुलंद करेगा. किसान संगठनों की ओर से गठित एमएसपी गारंटी मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ राजाराम त्रिपाठी ने शनिवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में किसानों के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा होगा।

देशभर में किसानों को जागरूक व संगठित करने निकले डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि किसान आंदोलन की समाप्ति पर केंद्र की सरकार ने एमएसपी को लेकर जो वादा किया था उसे अब तक पूरा नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि आज खेती जबरदस्त घाटे का सौदा बन चुकी है और किसानों के बेटे खेती से मुंह मोड़ रहे हैं.उन्होंने कहा कि सरकार अभी केवल 6त्न उत्पादन ही एमएसटी पर खरीदती है बाकी 94त्न किसानों का उत्पादन एमएसपी से भी कम रेट पर बिकता है, जिसके कारण किसानों को हर साल लगभग 7 लाख करोड़ का नुकसान होता है । डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि हर साल किसानों को मिलने वाली सभी प्रकार की सब्सिडी को अलग कर दिया जाए तो भी, देश भर के किसानों को 5 लाख करोड़ का घाटा हर साल सहना पड़ रहा है. इन हालातों में खेती और किसानी कैसे बचेगी यह सोचने का विषय है.

राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि हाल ही में वह उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले का दौरा करके लौटे हैं, जहां किसानों ने एमएसपी को लेकर निर्णायक लड़ाई लड?े पर सहमति जताई है. उन्होंने कहा लखनऊ के बाद वह बुलंदशहर जा रहे हैं जहां किसानों से मुलाकात कर एमएसपी को लेकर आगे की रणनीति बनाएंगे. डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने तेलंगाना कर्नाटक महाराष्ट्र और देश के कई राज्यों में एमएसपी गारंटी को लेकर उन्होंने दौरा किया है और हर जगह किसान लड़ाई लड?े को एकजुट है।

एमएसपी गारंटी मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा किसान संगठनों में इस मुद्दे को लेकर जबरदस्त एकता है. आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर किसान संगठनों ने नारा दिया है कि एमएसपी नहीं तो वोट नहीं उन्होंने कहा एक किसान इस देश की आत्मा है और वह यह दिखा कर रहेंगे कि उनकी अनदेखी कर कोई भी सरकार सत्ता में नहीं रह सकती. डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि हालत यह है, कि किसानों को बोतलबंद पानी से भी कम कीमत पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है. इस सब के बाद भी सत्ता प्रतिष्ठानों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है।

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