अभी नहीं थमा सम्मेद शिखरजी विवाद, लामबंद हुए आदिवासी; उठाई मरांग बुरु की मांग
नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने 6 जनवरी को पारसनाथ पहाड़ी को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने संबंधी अधिसूचना को वापस ले लिया। केंद्र सरकार ने झारखंड के गिरिडीह जिले में जैन तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी पर्वत क्षेत्र में पर्यटन और इको पर्यटन से जुड़ी हर गतिविधि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने ये निर्णय लिया। केंद्र सरकार के फैसले के बाद ऐसा लगा था कि विवाद थम गया है। 2 दिन पहले गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने भी आदिवासी समुदाय और जैन मतावलंबियों के बीच एक समझौता करवाया था जहां दोनों ने ही एक दूसरे की आस्था का सम्मान करते हुए पूजा-अर्चना करने पर सहमति जताई थी। हालांकि, विवाद अभी थमा नहीं है। आदिवासियों ने अब पारसनाथ को मरांग बुरु स्थल घोषित करने की मांग की है। आज यानी मंगलवार को गिरिडीह के मधुबन में आदिवासियों का महाजुटान है।
पारसनाथ को मरांग बुरु घोषित करने की मांग
सम्मेद शिखरजी विवाद क्या है? केंद्र सरकार के फैसले के बाद आदिवासी नाराज क्यों हैं? पारसनाथ को मरांग बुरु स्थल घोषित करने की मांग क्यों जोर पकड़ रही है? इस स्टोरी में इन्हीं विषयों की चर्चा करेंगे। 10 जनवरी को मरांग बुरु पारसनाथ बचाओ संघर्ष समिति के तत्वाधान में बड़ी संख्या में आदिवासियों का महाजुटान गिरिडीह स्थित मधुबन में हो रहा है। यहां पारसनाथ को मरांग बुरु घोषित करने की मांग की जाएगी। इस सभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम भी शिरकत करने वाले हैं। दरअसल, सोमवार को लोबिन हेंब्रम ने सम्मेद शिखरजी विवाद को लेकर कहा था कि हम जैन धर्म की आस्था का सम्मान करते हैं लेकिन पारसनाथ पर किसी का कब्जा नहीं होने देंगे।
लोबिन हेंब्रम ने कहा कि पारसनाथ आदिवासियों का मरांग बुरु है। सरकार इसे मरांग बुरु स्थल घोषित करे। उन्होंने आरोप लगाया कि पारसनाथ में सदियों से आदिवासी रहते आए हैं। आज उनको पहाड़ी के 10 किमी के दायरे में बलि चढ़ाने से रोका जा रहा है। जंगल से लकड़ी नहीं काटने दिया जाता। आदिवासियों का कहना है कि जमीन हमारी है। पहाड़ हमारे हैं। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं लेकिन आस्था के नाम पर यहां किसी और का कब्जा नहीं होने दिया जाएगा।
गिरिडीह में देशभर से आदिवासियों का होगा जुटान
गौरतलब है कि गिरिडीह के मधुबन में आदिवासियों के महाजुटान को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है। पुलिस-प्रशासन के लौग मुस्तैद हैं। सोमवार देर शाम पुलिस के जवानों ने मधुबन में फ्लैग मार्च भी किया। झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने इस मसले पर कहा कि यदि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों की मांगों पर 25 जनवरी तक उचित फैसला नहीं लेती तो वे भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू में उपवास पर बैठ जाएंगे। लोबिन हेंब्रम ने केंद्र और राज्य सरकार को बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है।
आदिवासियों के लिए मरांग बुरु का धार्मिक महत्व क्या है
मरांग बुरु क्या है? ये समझना भी जरूरी है। झारखंड में 26 जनजातियां निवास करती हैं। इनमें संताल आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है। 2001 से 2011 के बीच संताल आदिवासियों की संख्या में 2 लाख 84 हजार की वृद्धि हुई है। संताल आदिवासी झारखंड में तकरीबन सभी जिलों में हैं। गिरिडीह स्थित पारसनाथ पहाड़ी के आसपास भी संताल आदिवासियों की बड़ी संख्या है। डेमोग्राफी की वजह से संताल आदिवासी झारखंड की सियासत में हमेशा निर्णायक भूमिका में होते हैं। खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संताल आदिवासी समुदाय से आते हैं। जैसा कि स्पष्ट है, आदिवासी प्रकृति पूजक हैं। वे नदियों, पहाड़ों, मिट्टी और वन को देवता मानते हैं। इनमें संताल आदिवासियों के लिए मरांग बुरु सर्वोच्च देवता हैं। इसे ऐसे समझिए कि संताली भाषा में मरांग का अर्थ सबसे बड़ा होता है। बुरु का अर्थ पहाड़ है। पारसनाथ की पहाड़ी झारखंड की सबसे ऊंची चोटी है। इसलिए उसे मरांग बुरु कहा जाता है। यानी सर्वोच्च देवता।
आदिवासयों को जैन समाज की किस आपत्ति से विरोध है
एक समाचार वेबसाइट से बातचीत में मरांग बुरु सांवता सुसार बैसी के जिला उपाध्यक्ष बुधन हेंब्रम ने कहा कि पारसनाथ में सम्मेद शिखरजी के 4 किमी पूर्व में जाहेरथान है। जाहेरथान आदिवासियों का पूजास्थल है। यहां आदिवासी पूजा के दौरान पशुबलि देते हैं। प्रसाद के रूप में हड़िया (शराब) चढ़ाई जाती है। सम्मेद शिखरजी की तलहटी में 58 किमी के दायरे में जैनियों का परिक्रमा स्थल है। इस दायरे में कई आदिवासी गांव हैं। अब वहां मांस और मदिरा पर प्रतिबंध लगा तो इसकी जद में ये गांव आएंगा। आदिवासियों की चिंता है कि वे अपने पारंपरिक पर्व-त्योहार जैसे की सेंदरा और सोहराय नहीं मना पाएंगे। जाहेरथान में पूजा-अर्चना नहीं कर पाएंगे क्योंकि पशुबलि नहीं दी जा सकेगी। हालांकि, जैन मुनियों का तर्क है कि आदिवासियों को पूजा करने से किसी ने नहीं रोका। सम्मेद शिखरजी में भी उनका हमेशा स्वागत किया है लेकिन आपत्ति पशुबलि और मदिरा से है।