माघ मेला : स्कूल देखा न कॉलेज, गुरु संगत में बने कई भाषाओं के ज्ञानी
प्रयागराज
माघ मेला में आपको कई ऐसे संत भी मिल जाएंगे जो कभी स्कूल-कॉलेज नहीं गए लेकिन वे कई भाषाओं के जानकार हैं। ये संत अंग्रेजी, संस्कृत, असमिया, उड़िया और तमिल को समझने के साथ ही उसे बोल भी लेते हैं। अपने गुरु के सानिध्य में रहकर कई भाषाओं के ज्ञानी बन गए, जो अब सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए विदेश भी जाते हैं।
माघ मेले में शिविर लगाए संतों का कहना है कि धर्म प्रचार के लिए तमाम जगह जाना पड़ता है। पहले केवल हिंदी और संस्कृत आती थी, लेकिन समय के साथ यह जरूरी हो गया कि आज जहां जाएं वहां की भाषा में ही अपनी बात रखें क्योंकि इससे सामने वाला आपको अधिक बेहतर तरीके से समझ सकता है। मेला क्षेत्र में संगम लोअर मार्ग पर शिविर लगाए स्वामी कृष्णाचार्य वृंदावन से आए हैं।
उनका कहना है कि उन्होंने कभी स्कूल और कॉलेज का मुंह नहीं देखा। बालपन में गुरु सीता राम त्यागी के सानिध्य में आ गए। गुरु ज्ञानी थे। तमाम भाषाओं के जानकार थे। उन्हीं से अन्य भाषाओं का ज्ञान मिला। आज संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, मलयालम भाषाओं में प्रवचन करते हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे तमाम देशों में जा चुके हैं। गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने वाले स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ भी ऐसे ही संतों में शामिल हैं। उनका कहना है कि गुरुकुल में संस्कृत का तो ज्ञान कराया गया और हमें सनातनी परपंरा बताई गई, लेकिन समय के साथ अन्य भाषाओं का ज्ञान जरूर करना पड़ा। गुरु स्वामी निरंजन देवतीर्थ ने इसमें बहुत मदद की। इससे भी ज्यादा मदद उनके गुरु स्वामी भारती कृष्ण देवतीर्थ ने की। आज अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, असमिया, उड़िया, मराठी, अरबी, बंगाली, उर्दू जैसी भाषाओं का अच्छा ज्ञान है। स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म प्रचार के लिए जा चुके हैं।
इन्हीं में शामिल हैं खाकचौक के संत सीताराम दास। मुम्बई मलाड में रहने वाले संत की स्कूली शिक्षा कक्षा पांच तक ही हो सकी लेकिन आज अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, मराठी भाषाओं में पकड़ पूरी है। गायत्री गंगा चैरेटबल ट्रस्ट के संत प्रभाकर ने जरूर आचार्य की उपाधि ली है लेकिन अंग्रेजी में उनका हाथ तंग रहा। गुरु पंरमहंस आत्मदेव के संपर्क में आने के बाद इन्होंने अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ बनाई और श्रीलंका, बांग्लादेश तक जाकर प्रवचन कर रहे हैं।