2024 लोकसभा चुनाव की संजीवनी हैं 9 राज्य, जानें BJP के लिए जीत क्यों है अहम
नई दिल्ली
'हमें 2023 में सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने होंगे और जीतने होंगे।' भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने पार्टी पदाधिकारियों को यह साफ कर दिया है। इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा इन्हें सेमीफाइनल मानकर 2024 लोकसभा चुनाव की ओर देख रही है।
पहले समझें 9 राज्य क्यों जरूरी
2023 में त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। फिलहाल, भाजपा की तीन राज्यों (त्रिपुरा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश) में सरकार है। इसके अलावा पार्टी दो राज्यों (मेघालय, नगालैंड) में गठबंधन सरकार में शामिल है। ऐसे में तीनों शासित राज्यों में लौटना और पूर्वोत्तर में दबदबा बनाए रखने के लिए भाजपा के लिए क्लीन स्वीप अहम है।
2024 लोकसभा चुनाव के लिए ये 4 राज्य हैं अहम
2019 चुनाव में 303 सीटों पर फतह करने वाली भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनाव अहम होंगे। दरअसल, यहां पार्टी के लिए कम से कम 116 सीटों पर तस्वीर साफ हो सकती है। इनमें भी 93 सीटें केवल चार राज्यों (छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान) से आती हैं। इनमें से दो में भाजपा की सरकार है।
राजस्थान
200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में भाजपा ने 163 सीटों पर 2013 में जीत हासिल की थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस के हाथों हार गई। उस दौरान पार्टी को केवल 73 सीटें मिली थी। हालांकि, राज्य में लंबे समय से हर बार सरकार बदलने का सिलसिला चल रहा है।
मध्य प्रदेश
साल 2018 में कांग्रेस ने भाजपा के 15 साल के शासन का अंत कर दिया था। 230 सीटों वाले राज्य में कांग्रेस ने 114 सीटें हासिल कर करीबी मुकाबले में भाजपा को हराया था। हालांकि, महज दो सालों के बाद ही चौहान के नेतृत्व में राज्य में भाजपा की दोबारा सरकार बन गई थी। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बैठक कर 2023 चुनाव के लिए रणनीति तैयार की थी।
कर्नाटक
साल 2018 चुनाव में भाजपा कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन 224 सीटों में बहुमत साबित करने में असफल रही थी। उस दौरान कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर ने गठबंधन की सरकार बनाई थी, लेकिन बड़ी संख्या में विधायक टूटने के बाद सरकार गिरी और बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा ने वापसी की।
अब दक्षिण भारतीय राज्य में सियासी तनाव फिर जगह लेता जा रहा है। एक ओर जहां कांग्रेस राज्य में सक्रियता बढ़ा रही है। वहीं, राज्य में भाजपा भी आरक्षण का दांव खेल रही है। खबर है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 136 सीटों का लक्ष्य बनाया है। साथ ही नेतृत्व में खास बदलाव के संकेत नहीं दिए हैं। हालांकि, मंगलवार को बीएस येदियुरप्पा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच 15 मिनट की चर्चा ने अटकलें तेज कर दी हैं।
छत्तीसगढ़
राज्य में भाजपा साल 2018 से ही बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। 90 सीटों में कांग्रेस ने 68 सीटें हासिल कर भाजपा की रमन सिंह सरकार को बाहर कर दिया था। बीते साल हुए भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। वह भाजपा की 5वीं लगातार हार थी। इससे पहले भाजपा दंतेवाड़ा, चित्रकूट, मरवाही और खैरागढ़ उपचुनावों में हार मिली थी।
पूर्वोत्तर में दबदबा जरूरी
पूर्वोत्तर राज्यों में भी भाजपा दबदबा बरकरार रखने की कोशिश में है। इसके लिए पार्टी को मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड में जीत की जरूरत है। कहा जा रहा है कि मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। नगालैंड में भाजपा और एनडीपीपी गठबंधन मजबूत बना हुआ है। 2018 में यहां पार्टी ने 12 सीटें हासिल की थी और अब संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
मिजोरम में बीते चुनाव में भाजपा पहली बार अपना खाता खोलने में सफल हुई थी। त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी ने साल 2018 में 35 सीटें हासिल की थी। इस साल मई में पार्टी ने सीएम बिप्लब देव को हटाकर मणिक साहा को जिम्मेदारी दी थी। खबरें हैं कि यहां पार्टी मतभेदों का सामना कर रही है। इसके अलावा पार्टी को त्रिपुरा में एक ओर झटका तब लगा, जब ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल में विपक्ष के नेता हांग्शा कुमार ने 6000 समर्थकों के साथ तिपरा मोथा ज्वाइन कर ली थी।
तेलंगाना क्यों जरूरी
अब दक्षिण भारत में एंट्री की कोशिशों में जुटी भाजपा के लिए तेलंगाना का चुनाव भी अहम साबित होगा। मुनुगोडे उपचुनाव में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी को जीत मिली थी, लेकिन भाजपा ने भी मुख्य विपक्षी दल होने का तमगा हासिल कर लिया था।