मानवीय चेहरा: वृद्ध के सेवा भाव के कायल हुए कलेक्टर पूरी बात सुनकर, खुद घर छोड़ने गए
धार
आईएएस अफसरी के रौब के बजाय धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा का संवेदनशील और मानवीय चेहरा सामने आया है। कलेक्टर मिश्रा ने जनसुनवाई में पहुंचे एक वृद्ध को न सिर्फ कलेक्टर से घर तक पहुंचाया बल्कि उनसे घंटे भर बात भी की। उनके अनुभवों को जाना और इसे धार जिले के विकास की कार्ययोजना में शामिल करने का फैसला किया। कलेक्टर की यह उदारता और सादगी स्थानीय प्रशासनिक अफसरों और नागरिकों में चर्चा में है। कलेक्टर मिश्रा ने इस वृद्ध समाजसेवी को सम्मानित करने और राज्य शासन को भी सम्मान के लिए प्रस्ताव भेजने का फैसला किया है। दरअसल धार जिले के 88 वर्षीय समाजसेवी गोपाल राव दुबे मंगलवार को जनसुनवाई में पहुंचे थे। दुबे के साथ एक वृद्ध महिला थी जिनके बेटे ने घर से बेघर कर दिया है। वे उस महिला की मदद करने के लिए कलेक्टर के पास पहुंचे और उन्हें वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम में कहीं भी जगह दिलाने के लिए कहा। इस दौरान बातों-बातों में वे अपने अतीत में किए गए सामाजिक कार्यों को भी बता गए। यह सुन कलेक्टर उनके सेवा भाव के कायल हुए और उनकी पूरी बात सुनकर महिला को न्याय दिलाने के लिए संबंधित अफसरों को निर्देश दिया।
घर के लिए निकले तो वृद्ध समाजसेवी को कार में बैठा लिया
88 साल की उम्र में प्रशासन और लोगों की मदद करने वाले समाजसेवी गोपाल राव दुबे बैशाखी के सहारे चलते हैं। जनसुनवाई के बाद कलेक्टर अपने घर जा रहे थे तो उन्होंने दुबे को पैदल जाते देखा। इसके बाद उन्होंने कार रुकवाकर दुबे को बैठाया और घर ले गए। वहां काफी देर तक उनके सामाजिक अनुभव सुने और परिवारजनों की समस्या भी जानी। कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने बाद में कहा कि समाजसेवी दुबे के अनुभव समाज के लिए फायदेमंद हैं। उनसे कुछ सीखने को भी मिला है। उनकी सिर्फ यह इच्छा है कि सरकार, प्रशासन उनका इतने सालों तक समाजसेवा पर सम्मान करे तो वे स्थानीय स्तर पर सम्मान करने के साथ राज्य शासन को भी प्रस्ताव भेजेंगे।
धार में नगर रक्षा समिति गठन कराया दुबे ने
समाजसेवी गोपाल राव दुबे धार जिले की नगर सुरक्षा समिति के जनक रहे हैं। दुबे आजादी के पहले से आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। साथ ही धार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे कन्हैयालाल खादीवाल दादा के साथ उन्होंने काम किया है। आजादी के बाद वर्ष 1955 में उन्होंने नगर सुरक्षा समिति की स्थापना की थी। वे पुलिस के साथ रात में घूमकर गश्त करते थे। यह मॉडल पूरे प्रदेश में लागू हुआ और आज तक पुलिस के साथ सहयोगी के रूप में काम कर रहे हैं।