November 28, 2024

पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों का दबदबा, दिल जीतने की चुनावी रणनीति पर भाजपा

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नई दिल्ली
भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में त्रिपुरा में अपने बूते पर सरकार बनाई तो नगालैंड और मेघालय में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर राजग की सरकार का गठन किया। मगर, तब से अब तक चुनौतियों से लेकर संभावनाओं तक बहुत कुछ बदलता नजर आ रहा है। चूंकि, इन तीनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है, इसलिए भगवा रणनीतिकारों की उनके रुख पर नजर है। साथ ही पूर्वोत्तर पर विशेष नजर जमाए चली मोदी सरकार ने विकास योजनाओं से अपनी जमीन मजबूत करने का भी प्रयास किया है। जनता का दिल जीतने की इस विकासवादी रणनीति की परीक्षा अगले माह इन राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में होनी है।

पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों का मजबूत आधार
त्रिपुरा में 16 फरवरी और मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। तीनों राज्यों में विधानसभा की 60-60 सीटें हैं। सभी दल कमर कसकर इस चुनावी समर में उतरने के लिए तैयार हैं। रैलियां होंगी, सभाएं होंगी, लेकिन भाजपा पहले से सक्रिय है। दरअसल, पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों का मजबूत आधार है। 2018 में भाजपा ने लंबे समय से जमी वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंका। खुद 36 सीटें और आठ सीटें जीतने वाली गठबंधन सहयोगी इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (IPFT) के साथ मिलकर सरकार बना ली। भाजपा की इस मजबूती को ही देखते हुए कांग्रेस और सीपीएम ने हाथ मिला लिया है। इधर, टिपरा मोथा और आदिवासी अधिकार पार्टी भी सत्ताधारी दल के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। हालांकि, 2018 में सीपीएम 16 तो कांग्रेस शून्य पर सिमट गई थी।
 
अपने दम पर मैदान में उतरेंगे सभी दल
मेघालय में कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन भाजपा ने सिर्फ दो सीटें जीतने के बाद भी 20 विधायकों वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ मिलकर सरकार बना ली। इस बार सभी दल अलग-अलग मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। भाजपा के सामने यहां सीटें और कद बढ़ाने की चुनौती है, क्योंकि कांग्रेस और एनपीपी की तुलना में उसका वोट प्रतिशत भी काफी कम रहा था।

नगालैंड में NDPP के साथ गठबंधन के लिए भाजपा तैयार
नगालैंड की परिस्थिति बिल्कुल अलग है। यहां नगा पीपुल्स फ्रंट का दबदबा था, लेकिन इसमें दोफाड़ के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) से गठबंधन कर भाजपा चुनाव लड़ी तो भाजपा 12 और एनडीपीपी 18 सीटें जीत गई और राजग की सरकार बन गई। एनपीएफ के 26 विधायक भी एक-एक कर सत्ताधारी गठबंधन में शामिल हो गए। वहां विपक्षी लगभग समाप्त है। यहां एनडीपीपी नेताओं की ओर से अलग चुनाव लड़ने की आवाज उठ रही है। हालांकि, भाजपा 20:40 फार्मूले पर फिर गठबंधन के लिए तैयार है। यह परिस्थितियां बता रही हैं कि तीनों राज्यों में सरकार में होने के बावजूद भाजपा के मैदान सपाट नहीं है। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकारों की नजर 2014 से पूर्वोत्तर पर चल रही मेहनत के फल पर भी टिकी है। इस क्षेत्र के लिए खजाना खोलने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 से अब तक 51 बार पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा कर चुके हैं। सरकार संभालते ही मंत्रियों को नियमित दौरों की जिम्मेदारी दे दी गई। राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाएं पहले से चल रही हैं, लेकिन इनमें वित्तीय बाधा आड़े न आए, इसलिए पीएम-डिवाइन योजना शुरू कर दी गई है। यह पूरी तरह केंद्र से वित्तपोषित योजना है, जिसमें राज्यों के प्रस्ताव भी शामिल किए जा रहे हैं। दस फीसद सकल बजट समर्थन (GBS) का मद सरकार बढ़ाती गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2014-15 से लेकर सितंबर, 2022 तक इस मद में 3.64 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए।

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