असमंजस में क्यों सरकार, समलैंगिक वकील सौरभ कृपाल को जज बनाने पर कोलेजियम और केंद्र में खींचतान
नई दिल्ली
हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल करने की मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देकर कोलेजियम ने सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि सरकार को कोलेजियम में शामिल करने और एमओपी में संशोधन करने का उसका कोई इरादा नहीं है। इसकी पुष्टि उसने 20 जजों की की सिफारिश करके कर दी है। इतना ही नहीं उसने पांच साल पुराने एक नाम को दिल्ली हाईकोर्ट के लिए मंजूर करने के लिए फिर से केंद्र सरकार को भेजा है जिससे सरकार असमंजस में आ गई है।
यह नाम है समलैंगिक वरिष्ठ वकील सौरभ किरपाल का जिनका सहचर स्विट्जरलैंड का निवासी है। किरपाल के नाम को 2021 केंद्र सरकार ने आपत्तियों के साथ कोलेजियम को वापस भेज दिया था। सरकार का कहना था कि उम्मीदवार को समलैंगिक होना तथा उनके पार्टनर का विदेशी मूल कोने के कारण उन्हें जज बनाना सही नहीं होगा। इसमें सरकार ने विदेशी तथा देशी खुफिया एजेंसी रॉ और आईबी की रिपोर्ट का हवाला दिया था। इसके बाद किरपाल पर अनौपचारिक रूप से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का दबाव बनाया गया,
लेकिन उन्होंने कहा कि वह नाम वापस नहीं लेंगे उनका नाम दिल्ली हाईकोर्ट की कॉलेजियम ने भेजा उन्हें इसके लिए प्रयास नहीं किया था इसके लिए वह अपना नाम वापस नहीं लेंगे। कोलेजियम को नाम रद्द करना है तो वह खुद करे। किरपाल का नाम भेजने के साथ कोलेजियम ने इस बार बहुत मजूबती से सरकार को बताया है कि सौरभ के जज बनाने से कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि विभिन्न नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण होगा।सौरभ के विदेशी पार्टनर को लेकर कोर्ट ने बिना नाम लिए तर्क दिया है कि सरकार तथा उच्च नौकरशाही में कई बार ऐसे लोग आए हैं जिनके जीवनसाथी विदेशी रहे हैं लेकिन उनसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी इटली मूल की हैं। वहीं मौजूदा सरकार देश के पूर्व विदेश सचिव तथा अब विदेश मंत्री एस जयशंकर की पत्नी जापानी मूल की हैं।
वह सरकार में हैं और बहुत ही विश्वस्त मंत्रियों में से एक हैं। इसके अलावा देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की पुत्रवधू रूसी मूल की थीं और उनके साथ सरकारी आवास में भी रहती थीं। कोलेजियम ने कहा है कि स्विट्जरलैंड भारत का मित्र देश है औैर उसके नागरिकों से देश को कोई खतरा नहीं हैं। यह बेहद देश तटस्थ देश है और इसने 1515 से अपनी इस स्थिति को बनाया हुआ है।
यहां तक कि यह कुछ गिने चुने देशों में शामिल है जिन्होंने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध (1917 और 1945) में भाग नहीं लिया। इस दौरान किसी यूरोपीय देश ने इस पर न तो हमला किया और न ही इसने किसी पर हमला किया और युद्ध में किसी का साथ दिया। गौरतलब है कि सरकार के लगभग सभी उच्च पदाधिकारियों कानून मंत्री और उपराष्ट्रपति पिछले एक माह से न्यायपालिका पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि कोलेजियम को 2015 के संविधान पीठ के फैसले के अनुसार एमओपी में सुधार करना चाहिए। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर भी सवाल उठाया और कहा यह सिद्धांत संविधान में अजनबी है।
बुनियादी ढांचे पर CJI ने जवाब दिया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि आधारभूत ढांचा सिद्धांत न्यायपालिका के लिए ध्रुव तारा है जिससे संविधान की व्याख्या करने का मार्गदर्शन और दिशा मिलती है। मुख्य न्यायाधीश ने मुंबई में ननी पालखीवाला स्मारक व्याख्यान में यह बात कही है। ननी की दलीलों और बहस पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 1972 में बुनियादी ढांचे का सिद्धांत दिया था। इससे स्पष्ट है कि न्यायपालिका सरकार को कोई भी ढिलाई देने को तैयार नहीं है।
आधी सदी पूर्व केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल केस में सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच ने बहुत की महीन मार्जिन 7:6 के बहुमत से बुनियादी ढांचे का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार संविधान के बुनियादी ढांचे को संशोधित नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका की स्वायत्तता भी बुनियादी ढांचा बताकर 2015 संविधान पीठ ने एनजेएसी कानून, 2015 (जजों की नियुक्ति का कानून) को निरस्त कर दिया था।