November 25, 2024

उषा बारले, डोमार सिंह कुंवर, अजय कुमार मंडावी को पद्मश्री पुरस्कार

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रायपुर

छत्तीसगढ़ के तीन कलाकारों को देश के प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कारों के लिए चुना गया है। गृह मंत्रालय की ओर से बुधवार रात इसकी सूची जारी कर दी गई। इसमें पंडवानी गायिका उषा बारले, लोक नाट्य नाचा के दिग्गज डोमार सिंह कुंवर और लकड़ी पर नक्काशी-वूडकार्विंग के उस्ताद अजय कुमार मंडावी का नाम शामिल है। इन तीनों कलाकारों ने अपनी विधा और शैली पर खास छाप छोड़ी है।राज्यपाल अनुसूईया उइके ने पद्मश्री के लिए चयनित होने पर तीनों कलाकारों को बधाई और शुभकामना दी है। राज्यपाल ने अपने संदेश में उषा बारले, अजय कुमार मंडावी और डोमार सिंह कुंवर को छत्तीसगढ़ का गौरव बताया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, इन पुरस्कारों से छत्तीसगढ़ के कला जगत सहित पूरा प्रदेश गौरवान्वित हुआ है।
उषा बारले कापालिक शैली की पंडवानी गायिका हैं। 2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने सात साल की उम्र से पंडवानी सीखना शुरू किया था। बाद में उन्होंने तीजन बाई से भी इस कला की मंचीय बारीकियां सीखीं। छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयार्क, लंदन, जापान में भी पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं। गुरु घासीदास की जीवनगाथा को पहली बार पंडवानी शैली में पेश करने का श्रेय भी उषा बारले को जाता है।राज्य सरकार ने 2016 में इन्हें गुरु घासीदास सम्मान दिया गया था।

बालोद के लाटाबोड़ गांव के डोमार सिंह कुंवर बचपन से ही नाटकों में भाग लेते रहे। उनके पिता भी रामलीला में मंदोदरी जैसी स्त्री पात्रों की भूमिका करते रहे थे। पड़ोसी गांव शिवदयाल नाचा के पुरोधा दाऊ मंदराजी की पार्टी में तबला बजाते थे, वे डोमार सिंह के पिता के मित्र थे। ऐसे में डोमार सिंह प्रदेश की पहली नाचा पार्टी से जुड़ गए। वे वहां महिला पात्रों को जीवंत करते थे। यह सन 1963-64 की बात होगी। लंबे समय तक दाऊ के साथ काम करने के बाद डोमार दूसरी पार्टी में चले गए। उसके बाद अपनी एक संस्था बनाई। अभी भी उनकी लोक नाचा मयारू मोरनाम की नाचा पार्टी गांवों में धूम मचा रही है।

कांकेर जिले से सटे गोविंदपुर गांव के अजय कुमार मंडावी का पूरा परिवार कला और शिल्प से जुड़ा हुआ है। शिक्षक पिता आरपी मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं। मां सरोज मंडावी पेंटिंग करती हैं। भाई विजय मंडावी अभिनेता हैं। उन्होंने लकड़ी पर नक्काशी करने में महारथ हासिल की। वे धार्मिक ग्रंथों, साहित्यिक रचनाओं आदि को लकड़ी पर उकेरते हैं। कांकेर के कलेक्टर रहे निर्मल खाखा की सलाह पर उन्होंने जेल में बंद पूर्व नक्सलियों को यह कला सिखाई। सैकड़ो ऐसे बंदी उनसे यह कला सीखकर अपना जीवन बदल चुके हैं।

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