September 22, 2024

रामचरितमानस विवाद के बीच अखिलेश यादव का ‘फॉर्मूला 2024’, मुस्लिम और दलितों पर दांव

0

 लखनऊ 

अखिलेश यादव पिछड़ों, मुस्लिमों और दलितों के भरोसे अब भाजपा को आम चुनाव में रोकने की तैयारी में हैं। जातीय समीकरणों की इस बिसात में उसका सारा जोर 2024 की जंग को 80 बनाम 20 करने पर है। यही मुद्दा स्वामी प्रसाद मौर्य तब से उठा रहे हैं, जब से वह भाजपा छोड़ सपा में आए हैं। मौर्य ही नहीं बसपा व कांग्रेस से आए कई नेताओं को खासा अहमियत देते हुए राष्ट्रीय संगठन में बड़े पद दे दिए गए हैं। अब इसी तर्ज पर अखिलेश जल्द प्रदेश कार्यकारिणी गठित करेंगे, जिसमें इसी तरह का सामाजिक समीकरण का अक्स दिखेगा।

अखिलेश ने नई कार्यकारिणी गठन से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य को समझाया कि वह धार्मिक मसले को तूल न देकर ओबीसी आरक्षण और जातीय जनगणना का मुद्दा आगे करें और इसके जरिए ओबीसी की गोलबंदी की जाए। पार्टी इसी पर आंदोलन करने जा रही है। राष्ट्रीय महासचिव बना कर मौर्य को यह संदेश दिया है। पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सवर्ण जातियों को प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम दिया है। इसमें क्षत्रिय से ज्यादा ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व मिला है। सपा ने 80 बनाम 20 का नारा पिछले विधानसभा चुनाव में दिया था लेकिन भाजपा के हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के आगे यह कामयाब नहीं रहा। पिछड़ी जातियों में भाजपा ने भी अपना खूब असर दिखाया।

11 यादव व 10 मुस्लिम
सपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुस्लिम यादव यानी एमवाई समीकरण को संतुलन बना कर साधने की कोशिश की है। साथ ही गैरयादव ओबीसी जातियों के नेताओं को भी खास तवज्जो दी है। 14 राष्ट्रीय महासचिवों में एक भी ब्राह्मण और क्षत्रिय नहीं है। इस बार कार्यकारिणी में 10 मुस्लिम, 11 यादव, 25 गैरयादव ओबीसी,10 सवर्ण, 6 दलित, एक अनुसूचित जनजाति व एक ईसाई हैं। ब्राह्मण नेताओं में अभिषेक मिश्र, तारकेश्वर मिश्र, राज कुमार मिश्र, पवन पांडेय भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किए गए हैं। दो ठाकुर हैं। गैरयादव में तीन कुर्मी व पांच जाट हैं। इसी समीकरण के भरोसे सपा ने विधानसभा में सीटे 47 से बढ़ाकर लगभग ढाई गुना कर लीं।

दूसरे दलों से आए नेताओं को तरजीह
2022 के चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़कर सपा में शामिल होने वाले पूर्व मंत्री लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को भी राष्‍ट्रीय महासचिव बनाया गया है। इंद्रजीत सरोज को भी यही पद मिला है। पाला बदल कर आए त्रिभुवन दत्त, हरेंद्र मलिक भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह पा गए।

शिवपाल यादव को कितनी तवज्जो!
शिवपाल यादव की भूमिका क्या होगी, टिकट वितरण में उनकी कितनी चलेगी, यह अभी बहुत स्पष्ट नहीं है। उनके किसी समर्थक को कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली। बेटे आदित्य यादव भी अभी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से दूर हैं। वह खुद की पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव थे। माना जा रहा है समय के साथ शिवपाल व आदित्य यादव की भूमिका और बढ़ेगी।
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed