September 23, 2024

मछली पालन से सिर्फ पखांजूर में करीब 500 करोड़ का टर्न ओवर

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कांकेर
बस्तर के हरे-भरे क्षेत्र में नीली क्रांति से अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला है। प्रदेश के कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के तस्वीर बदलने लगी है। इस विकासखण्ड का पखांजूर क्षेत्र मत्स्य उत्पादन के नाम से देश में अपनी एक नई जगह बना रहा हैं। अब यह क्षेत्र देश में मछली पालन के नक्शे पर जाना पहचाना नाम है। यहां क्लस्टर एप्रोच पर मछली पालन किया जा रहा है। यह संभव हुआ है कि कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के पंखाजूर क्षेत्र के किसानों की मेहनत और शासन की योजनाओं के मदद के फलस्वरूप। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में बीते 4 वर्षों में छत्तीसगढ़ हर क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है और पूरे देश में छत्तीसगढ़ की एक नई पहचान स्थापित हो रही है।

पखांजूर इलाके में मछली पालन से लगभग पांच हजार से अधिक मत्स्य पालक किसान जुड़े हैं। यहां मछली पालन किस वृहद तौर पर किया जा रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन किसानों के द्वारा मछली बीज, मछलियों के उत्पादन और परिवहन आदि में औसत वार्षिक टर्न ओवर 500 करोड़ रूपए से अधिक का है। इस क्षेत्र में लगभग 19,700 तालाबों, इनमें लगभग 99 प्रतिशत तालाबों में मछली पालन किया जा रहा है। इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी मेहनत और हुनर तथा शासन की योजनाओं के फलस्वरूप इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। इन परिवारों ने स्थानीय कृषकों की मदद से मछली पालन के काम को आगे बढ़ाया। अब यह कार्य पखांजूर विकासखण्ड के आसपास के गांवों में फैल चुका है। यहां मछली उत्पादन के साथ-साथ मत्स्य बीज का भी उत्पादन हो रहा है। यहां से महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में मछली बीज की सप्लाई की जाती है। अकेले मछली बीज से ही किसानों को करीब 125 करोड़ रूपए की आय होती है।

पखांजूर के बड़ेकापसी गांव की कहानी और भी उत्साहवर्धक है, आसपास के 5 गांवों में किसान मछली की सामूहिक खेती कर रहे हैं। इन गांवों में मछली पालन के लिए 1700 तालाब बनाए गए हैं। जिनमें 30 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है। गांव के लोग बताते हैं कि अब वे परंपरागत खेती-किसानी का काम छोड़कर लोग अब मछली पालन व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं, क्योकि कम लागत में अधिक मुनाफे का धंधा है। गांवों के उनके कई खेत अब मछली की खेती के लिए तालाब में बदल गए हैं।

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