November 16, 2024

अहंकार का जन्म संस्कारों के अभाव के कारण होता है: मणिप्रभ सूरीश्वर

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राजनांदगांव

खरत्तरगच्छाधिपति मणि प्रभ सूरीश्वर जी ने कहा कि संस्कारधानी शब्द का अर्थ है संस्कारों से परिपूर्ण होना। उन्होंने कहा कि हमें यह तय करना है कि हम संस्कारों से परिपूर्ण थे,हैं या होंगे। भूत, वर्तमान और भविष्य हमें तीनों को जोड़ना है। संस्कार प्राप्त करना हो तो आपको राजनांदगांव में बसना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ का वातावरण हो तो राजनांदगांव जैसा होना चाहिए। उन्होंने कहा अहंकार का जन्म संस्कारों के अभाव के कारण होता है। राजनांदगांव में आठ – नौ दीक्षाएं हुई है, यह यहां के संस्कार को ही दशार्ता है।

जिनमणिप्रभ सुरीश्वर जी ने आज गौतम स्वामी एवं माता पद्मावती देवी की मूर्ति स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सब साधु समान हैं ,यह भाव हमारे मन में होना चाहिए। हर व्यक्ति गच्छ का हो और पूरे भारत में एक समान वातावरण होना चाहिए इसलिए ज्ञान वाटिका का नाम रखा गया। ज्ञान वाटिका में आप अपने बच्चों को माताओं के साथ अवश्य भेजें। आपको लब्धि चाहिए या विनय और अगर लब्धि चाहिए तो विनय होना जरूरी है। मन में समर्पण का भाव होना चाहिए। समर्पण अर्थात मन के भाव की समाप्ति होकर जिनके प्रति हमारा समर्पण भाव हो रहा है उनके निर्णय के अनुसार हमारा भाव कार्य करें। जिसने नदी पकड़ ली उसे समुद्र अवश्य मिलता है। नदी संत है तो समुद्र परमात्मा है। उन्होंने कहा कि हम शरण भी लेते हैं किंतु स्वयं के अस्तित्व को विलीन नहीं करते। भगवान महावीर बनना है तो हमें गौतम स्वामी जैसा बनना होगा ,उनके समान विनय लाना होगा। उन्होंने कहा कि अंधेरे को बाहर करना है तो दिया जलाना ही होगा। हमें अपने मन में आत्म तत्व का दिया जलाना होगा।

आचार्य पूणार्नंद सुरीश्वर जी ने कहा कि जीवन में संस्कार होना चाहिए। माताएं बच्चों को दूध पिलाने में शर्म करती है और उन्हें नौकरों के हवाले कर देती है। उन्होंने कहा कि जैसा अवसर होता है वैसा ही बच्चे पर असर पड़ता है। जीवन में जब तक संस्कार नहीं आएंगे तब तक उन्नति संभव नहीं है।

आचार्य पीयूष सागर जी ने इस अवसर पर अपने विचार गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया। सम्यक रत्न मुनि ने कहा कि अहंकार जो दुगुर्णों और दोषों का कारण है, उसका हमें त्याग करना चाहिए। अहंकार को अपने आप से निकालने का एक ही मार्ग है और वह है समर्पण। हमें समर्पण नदी जैसे नाम, काम,दाम और गांव को छोड़कर समुद्र में मिलने जैसा करना होगा तभी हम मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें लड़ना भी है तो परमात्मा से लड़ना चाहिए और रोना भी है तो परमात्मा के सामने में रोना चाहिए। उनके समक्ष लड़ने और रोने से हमें कुछ न कुछ तो अवश्य मिलेगा।

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