सत्संग चलता-फिरता मानसरोवर : शंभूशरण लाटा
रायपुर
सत्संग चलता – फिरता मानसरोवर है जो इस सत्संग मेंं डूबकी लगा लेता है फिर उसे किसी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है। तीर्थ करने का जो पुण्य मिलता है वह सत्संग में प्राप्त होता है बशर्ते जीव की इस सरोवर में पूरे विश्वास श्रद्धा के साथ डूबकी लगानी पड़ेगी। इस संसार रूपी भव सागर से केवल सत्संग भगवान के नाम स्मरण से ही पार किया जा सकता है। सत्संग का लाभ यह है कि मन के अंदर में व्यापार, परिवार और संसार की न जाने कितनी गांठे है जिसमें मनुष्य उलझा रहता है वह सब खुलने लग जाती है और वह भगवान में रम जाता है। रामचरित्र मानस केवल ग्रंथ ही नहीं है बल्कि यह भगवान है जो मनुष्य को संसार में कैसे रहना चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए, कितना बोलना और सुनना चाहिए इन सब की सीख वह देता है। रामचरित्र मानस पर जो विवाद चल रहा है वह अज्ञानी लोगों की देन है।
एकता चौक गुढि?ारी के जनता कॉलोनी में आज से प्रारंभ हुई रामकथा के पहले दिन संत श्री शंभूशरण लाटा जी ने ये बातें श्रद्धालुओं को बताई। उन्होंने कहा कि भगवान की पूजा भुलना बड़ी बात नहीं है, पूजा कभी भी करो लेकिन उसमें भाव का होना अत्यंत आवश्यक है तभी वह पूजा सार्थक होती है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि किस भगवान की पूजा पहले हो रही है या किसकी बाद में। जहां श्रद्धा और विश्वास नहीं है वहां पूजा सार्थक नहीं है। आज केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए पूजा की जा रही है। श्रद्धा और विश्वास ही भगवान के दर्शन करा सकते है। जिस प्रकार से भौतिक व शारीरिक सुख के लिए लोग ना-ना प्रकार के उपाय करते है उसी प्रकार से अंत:करण के सुख के लिए सत्संग आवश्यक है क्योंकि सत्संग के बिना अंत:करण का सुख प्राप्त नहीं हो सकता भले ही भौतिक सुख कितना भी प्राप्त कर लो लेकिन आनंद की प्राप्ति नहीं होती।
ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है, गुरु ही एक ऐसा तत्व है जो केवल कृपा ही करता है। उसके पास कृपा के अलावा और कुछ नहीं होता। यदि गुरु डांटता, मारता है या अन्य जो भी कार्य करता है वह लोगों को पसंद नहीं आता लेकिन उसमें गुरु की कृपा छिपी होती है। गुरु चरण रच की वंदना करने से अंत:करण की आँखों का दोष दूर हो जाता है। बाहरी आँखों से संसार को तो देखा जा सकता है लेकिन भगवान को नहीं, भगवान को देखने के लिए अंत:करण की आँखों पर लगी धूल को हटाना आवश्यक है और वह केवल गुरु की कृपा ही कर सकती है।
संतश्री लाटा ने कहा कि सत्संग चलता फिरता प्रयागराज है जिसमें ज्ञान घाट, उपासना घाट, क्रम घाट और शरणागति घाट है। जिसके श्रवण मात्र से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है लेकिन सत्संग बिना राम की कृपा से प्राप्त नहीं हो सकता। जब तक रामकृपा नहीं होगी तब तक मनुष्य चाह कर भी नहीं आ सकता। मनुष्य को खलरुपी लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए क्योंकि खल कभी किसी का भला कर ही नहीं सकते और सोच भी नहीं सकते। प्रयागराज में नहाने का फल प्राप्त होगा कि नहीं और होगा भी तो कब मिलेगा यह कोई नहीं जानता, लेकिन संतों के सत्संग में आने का फल तत्काल मनुष्य को प्राप्त होता है। प्रकाश के बारे में अंधेरे से अच्छा और कोई नहीं जान सकता क्योंकि अंधेरा नहीं बता सकता कि उसने प्रकाश को देखा है। इसी प्रकार से हवा को महसूस किया जा सकता है लेकिन उसको देखा नहीं जा सकता। यह दृष्टांत लाटाजी ने भूत-प्रेतों के होने के संदर्भ में श्रद्धालुओं को दिया।