‘ऑपरेशन गंगा’ युद्ध में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स की देश में वापसी की थ्रिलिंग दास्तां
भोपाल
मध्यप्रदेश के 2009 बैच के आईएएस तरुण पिथोड़े ने रूस और यूक्रेन के युद्ध और वहां फंसे भारतीय स्टूडेंट्स की देश में वापसी को लेकर चलाए गए ऑपरेशन गंगा अभियान पर एक पुस्तक लिखी है। पिथोड़े ने इस पुस्तक का नाम भी ऑपरेशन गंगा ही रखा है। इसमें बताया गया है कि किस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति के दम पर यूक्रेन युद्ध में भारतीय स्टूडेंट्स के लिए डिजास्टर मैनेजमेंट किया और उनका अफसरों, मंत्रियों ने साथ दिया।
राजगढ़, सीहोर, बैतूल और भोपाल कलेक्टर रह चुके पिथोड़े इसके पहले कोविड के खिलाफ लड़ाई: डायरी आॅफ ब्यूरोक्रेट के नाम पर किताब लिख चुके हैं जिसमें कोरोना से बचाव के लिए किए गए कामों के अनुभव शेयर किए गए हैं। आपरेशन गंगा किताब लिखने के पहले पिथोड़े ने जुलाई 2022 में आधा दर्जन देशों पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया, आस्ट्रिया, नीदरलैंड की यात्रा की और वहां लोगों से मुलाकात कर युद्ध के दौरान की वस्तुस्थिति समझी।
पांच लीटर पानी और पांच दिन
इस किताब में पांच लीटर पानी सब चैप्टर का उल्लेख है जिसमें बताया गया है कि युद्ध के दौरान किस तरह पानी की बूंद-बूंद के लिए लोगों को मशक्कत करनी पड़ी थी। युद्ध के दौरान पांच लीटर पानी वहां रहने वालों को दिया जाता था जिसका इस्तेमाल पांच दिन तक करना होता था। इसमें नित्यक्रिया से लेकर पीने के पानी और अन्य तरह के उपयोग शामिल थे।
इस किताब में भारतीय विदेश सेवा, सेना, दूतावास सेवा के अफसरों के साथ उन पांच केंद्रीय मंत्रियों के साहस का भी डिटेल के साथ जिक्र है जिन्होंने जान की परवाह किए बगैर यूक्रेन जाकर वहां फंसे भारतीय छात्र छात्राओं की मदद की।
मदद करने वाली संस्थाओं का जिक्र
किताब में यूक्रेन में फंसे स्टूडेंट्स की रेस्क्यू में मदद करने वाली भारतीय संस्थाओं को भी सम्मान दिया गया है। इसमें इस्कॉन, स्वामीनाथन, बुद्धिस्ट, कालेज हंगरी, आर्ट आफ लिविंग, मां आनंदमयी, मलयाली संगठन, गुरुद्वारा समिति, मंदिर समिति का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही लंदन में बसे भारतीय मूल के उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल के द्वारा की गई मदद के बारे में भी जानकारी दी गई है।
दोस्ती के लिए डटा रहा एमपी का बेटा संस्कार
किताब में मध्यप्रदेश के स्टूडेंट संस्कार का भी जिक्र है जो यूक्रेन में दोस्ती के लिए जान की परवाह किए बगैर डटा रहा। दरअसल उसके दोस्त की तबियत खराब हो गई थी और तब संस्कार ने उसका साथ छोड़कर देश वापस लौटने के बजाय उसके उपचार का इंतजाम कराया और ठीक होने के बाद साथ देश लौटा। इस दौरान तिरंगा बनाकर कैसे वह भारतीय रेस्क्यू टीम की नजर में आया, इसका भी जिक्र किताब में किया गया है।