संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ प्रस्ताव, एक बार फिर भारत ने मतदान से बनाई दूरी
नईदिल्ली
रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए आह्वान करने वाले एक प्रस्ताव पर भारत फिर से अनुपस्थित रहा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो-तिहाई से अधिक मतों से अपनाया।
यूक्रेन द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव पर गुरुवार को मतदान हुआ। साथ ही, विश्व शांति के लिए गांधीवादी ट्रस्टीशिप की अवधारणा का पता लगाने के लिए भारत के मिशन द्वारा प्रायोजित एक राउंडटेबल सम्मेलन आयोजित किया गया।
संयुक्त राष्ट्र में देश की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने भारत की अनुपस्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि हम हमेशा बातचीत और कूटनीति से मसले का हल चाहते हैं।
प्रस्ताव में संघर्ष को बातचीत से समाप्त करने का उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन यूक्रेन में जल्द से जल्द व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति हासिल करने के लिए राजनीतिक प्रयासों का आह्वान किया गया।
कम्बोज ने कहा, कोई ऐसी प्रक्रिया जिसमें दोनों पक्षों में से कोई भी शामिल नहीं है, क्या एक विश्वसनीय और सार्थक समाधान देगी?।
उन्होंने कहा, हम आज के प्रस्ताव के उद्देश्यों पर ध्यान दे रहे हैं, स्थायी शांति हासिल करने के अपने वांछित लक्ष्य तक पहुंचने में इसकी अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए हम इससे दूर रहने के लिए विवश हैं।
कम्बोज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का हवाला दिया, जिसमें पीएम मोदी ने कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है, इस पर उन्होंने कहा, शत्रुता और हिंसा का बढ़ना किसी के हित में नहीं है। इसके बजाय, बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर तत्काल वापसी ही एकमात्र आगे बढ़ने का रास्ता है।
प्रस्ताव के पक्ष में 141 और विरोध में 7 वोट पड़े। भारत उन 32 देशों में शामिल था, जिन्होंने मतदान में भाग नहीं लिया।
प्रस्ताव रूस के आक्रमण की निंदा करता है और एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति के लिए इसकी तत्काल वापसी की मांग करता है।
यह अपराधों के खिलाफ मुकदमा चलाने और पीड़ितों के लिए न्याय की भी मांग करता है।
इससे पहले, रूस के करीबी सहयोगी बेलारूस द्वारा प्रस्ताव को विफल करने के लिए प्रायोजित दो संशोधनों को वोट दिया गया, एक के लिए केवल 11 वोट और दूसरे के लिए 15 वोट मिले।
भारत उन संशोधनों से भी दूर रहा, जिनमें मॉस्को की आक्रामकता और आक्रमण के संदर्भों को हटाने की मांग की गई थी और यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति को समाप्त करने के बजाय इसके कब्जे वाले क्षेत्रों से वापस लेने की मांग की गई थी।
पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने यह दावा करते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया कि यह यूक्रेन के समानांतर मामला है, जिसे प्रस्ताव के प्रायोजकों ने नजरअंदाज कर दिया।
भारत मिशन के काउंसलर प्रतीक माथुर ने कहा कि यह उकसावे वाला बयान है, जो विशेष रूप से खेदजनक है और निश्चित रूप से ऐसे समय में आया है जब दो दिनों की चर्चा के बाद, हम सभी इस बात पर सहमत हुए हैं कि संघर्ष को हल करने के लिए शांति का मार्ग ही एकमात्र रास्ता हो सकता है।
कम्बोज ने कहा कि संघर्ष को समाप्त करने के लिए व राजनयिक प्रयासों के लिए सदस्य राज्यों के समर्थन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के व्यापक शांति को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, जमीनी रिपोर्ट बताती है कि कई मोर्चो पर संघर्ष बढ़ा है।
रूस के वीटो के कारण सुरक्षा परिषद में वोट नहीं होने ्रके कारण महासभा ने एक आपातकालीन सत्र में ये प्रस्ताव लिया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने स्पष्ट रूप से पूछा, क्या संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और विशेष रूप से इसका प्रमुख अंग सुरक्षा परिषद चुनौतियों का समाधान करने के लिए अप्रभावी नहीं हो गया है?
द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता माने जाने वाले केवल पांच देशों को परिषद में वीटो अधिकार दिए गए थे।
सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के विपरीत महासभा के पास कोई प्रवर्तन शक्तियां नहीं हैं और वह केवल नैतिक प्रभाव रखती हैं।
एक साल पहले 24 फरवरी को शुरू हुए युद्ध के बाद से यूक्रेन पर गुरुवार का छठा प्रस्ताव था और भारत ने उन सभी में भाग नहीं लिया।
कंबोज ने कहा कि भारत इस बात से चिंतित था कि इस संघर्ष के चलते अनगिनत लोगों की जान गई और विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत लाखों लोग बेघर हो गए और पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। नागरिक बुनियादी ढांचे पर हमलों की आर्थिक रिपोर्ट भी गहन चिंता में डालने वाली हैं।
उन्होंने कहा कि भारत अपनी ओर से यूक्रे न और अन्य जगहों पर इसके प्रभावों से निपटने में मदद कर रहा है।
उन्होंने कहा, हम यूक्रेन को मानवीय सहायता और आर्थिक संकट के तहत सहायता प्रदान कर रहे है।