चिराग-कुशवाहा के बाद अब सहनी, बिहार में आसान नहीं नीतीश की राह; जानें BJP का प्लान
नई दिल्ली
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने एक दिवसीय बिहार दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर हमला किया। इस दौरान उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि अब नीतीश कुमार के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दरवाजे सदा के लिए बंद हो गए हैं। बीजेपी के ''चाणक्य" के इस बयान से पहले भगवा पार्टी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अपनी राह जुदा करने वाले चिराग पासवान भी हाल में संपन्न हुए उपचुनावों में बीजेपी से अपनी नजदीकी को उजागर कर दिया। इन जगहों पर उन्होंने बीजेपी कैंडिडेट के पक्ष में प्रचार भी किया। चिराग पासवान के बाद कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाह ने बीजेपी के पक्ष में बिहार में बैटिंग करनी शुरू कर दी है। जेडीयू से अपना संबंध तोड़ने के बाद वह भी भगवा पार्टी की भाषा बोलने लगे हैं। इतना ही नहीं, नई पार्टी बनाने वाले कुशवाहा से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने मुलाकात भी की है। ऐसा माना जा रहा है कि पहले लोकसभा चुनाव और फिर 2025 के विधानसभा चुनाव में वह बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी अखाड़े में कूद सकते हैं। वहीं, मुकेश सहनी का साथ मिलने से बिहार में बड़े पैमाने पर मल्लाह जाति को पाले में करने की भी तैयारी चल रही है।
मोदी के हनुमान चिराग
चूंकि बिहार की राजनीति में जाति सदैव हावी रही है। यहां ध्रुवीकरण की कोशिश कभी सफल नहीं रही है। ऐसे में बीजेपी की नई रणनीति को समझने के लिए हमें इन जातियों की सियासी ताकत के बारे में जानना जरूरी है। सबसे पहले बात चिराग पासवान की, जो कि अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को संभालने की कोशिश करते दिख रहे हैं। रामविलास को बिहार की दुसाध जाति का कद्दावर नेता माना जाता है। इनकी संख्या 4 से 4.50 प्रतिशत के करीब है। यह जाति लड़ाकू और दबंग किस्म की रही है। इनका अभी तक पलायन नहीं हुआ है।
चिराग ही संभालेंगे पिता की विरासत
चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के बागी तेवर के कारण भले ही लोजपा को दो फाड़ हो गया, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि पिता की विरासत चिराग पासवान के पास ही जाएगी। भारतीय राजनीति में अभी तक ऐसा ही होता आ रहा है। अखिलेश और शिवपाल यादव की लड़ाई इसका ताजा उदाहरण है। दूसरी तरफ, चिराग पासवान ने भले ही एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ लिया, लेकिन बीजेपी के साथ उनका याराना कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान तक बता दिया था। उनके इस बयान के बाद चिराग पासवान के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा कुछ और चारा बचा नहीं है। हालांकि, 4-4.50 प्रतिशत दुसाध वोट के कारण उनकी प्रासंगिता बिहार की राजनीति में बनी रहेगी।
नीतीश की राह मुश्किल कर सकते कुशवाहा?
उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में कुशवाहा जाति के एक सशक्त नेता माने जाते हैं। ओबीसी में कुशवाहा यादव के बाद संख्या के आधार पर दूसरी बड़ी जाति है। यह आर्थिक रूप से सबल जाति है। बिहार में सब्जी के व्यापार में सबसे अधिक इसी जाति के लोग हैं। बिहार में इनकी संख्या 4-4.50 प्रतिशत के करीब है। बिहार के ऐतिहासिक लव-कुश समीकरण में सबसे बड़ी संख्या इसी की है। जगदेव प्रसाद और शकुनी चौधरी जैसे नेता इस जाति का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हालांकि, वे इसमें उतने अधिक सफल नहीं रहे। बिहार में कुशवाहा नेताओं की संख्या भी अधिक है। बिहार में ओबीसी में यादवों के बाद सबसे बड़ी जाति होने के कारण कुशवाहा नेता अक्सर अपनी दावेदारी पेश करते रहते हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने अभी इसी आधार पर नीतीश कुमार को चुनौती दी है। उन्होंने यह भी याद दिलाया है कि समता पार्टी का गठन ही लालू यादव के शासन के विरोध में हुआ था। उन्होंने नीतीश कुमार से ऐसा सवाल कर दिया है कि जेडीयू अध्यक्ष को सफाई देनी पड़ रही है।
सहनी को भी पुचकार रही बीजेपी
मुकेश सहनी बिहार में मल्लाहों के नेता माने जाते हैं, जिनकी आबादी तीन प्रतिशत के करीब है। हालांकि, यूपी के मल्लाहों की तुलना में ये आर्थिक रूप से सबल होते हैं। इस कारण से ये 4-5 प्रतिशत वोटों पर असरदार साबित होते रहते हैं। यही कारण है कि मुकेश सहनी को बीजेपी की तरफ से तरजीह मिल रही है। उन्हें हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा दी गई है। उन्होंने खुद कई बार बीजेपी के प्रति अपना प्रेम जाताया है।ऐसे में बीजेपी ने बिहार में नीतीश कुमार की भरपाई के लिए तीन दलों का जुगाड़ कर लिया है। तीनो मिलाकर करीब 10-12 प्रतिशत का वोट बैंक इकट्ठा हो सकता है। सूत्र बताते हैं कि मांझी के साथ भी बात चल रही है। आने वाले समय में बिहार की राजनीति में कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।