मोहन भागवत बोले- भारत में रहने वाला हर व्यक्ति ‘हिंदू’, किसी को पूजा के तरीके को बदलने की जरूरत नहीं
जयपुर
दलसुखदास जी महाराज (संजेली धाम) ने शनिवार को राजस्थान के डूंगरपुर जिले में अखिल भारतीय प्रभात ग्राम मिलन में कहा कि कोई जिसकी चाहे पूजा कर सकता है, लेकिन यह तय है कि हम सभी हिंदू हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे, कार्यक्रम हर पांच साल में एक बार आयोजित किया जाता है। दलसुखदास ने कहा, हमारी संस्कृति को तोड़ने के चौतरफा प्रयास हुए हैं। लेकिन हमारा हिंदू धर्म इस दुनिया के निर्माण के समय से है। हमारे धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। उन्होंने कहा कि किसी को भी पूजा करने के तरीके को बदलने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सब रास्ते एक ही जगह जाते हैं. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर में स्वयंसेवकों (संघ के स्वयंसेवकों) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विविधता में एकता भारत की सदियों पुरानी विशेषता है. एक मात्र हिंदुत्व नाम का विचार दुनिया में ऐसा है जो सभी को साथ लेने में विश्वास करता है.
आरएसएस के सरसंघचालक ने कहा, ‘हम 1925 से कह रहे हैं कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है. जो भारत को अपनी माता मानता है, मातृभूमि मानता है, जो भारत में विविधता में एकता वाली संस्कृति को जीना चाहता है, उसके लिए प्रयास करता है, वह पूजा किसी भी तरह से करे, भाषा कोई भी बोले, खानपान, रीति-रिवाज कोई भी हो, वह हिंदू है.’ उन्होंने कहा कि एक मात्र हिंदुत्व नाम का विचार दुनिया में ऐसा है जो विविधताओं को एकजुट करने में विश्वास करता है. भागवत ने कहा कि हिंदुत्व ने सब विविधताओं को हजारों वर्षों से भारत की भूमि में एक साथ चलाया है, यह सत्य है और इस सत्य को बोलना है और डंके की चोट पर बोलना है.
हर भारतीय जो 40 हजार साल पुराने ‘अखंड भारत’ का हिस्सा
उन्होंने कहा कि संघ का काम हिंदुत्व के विचार के अनुसार व्यक्ति और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना और लोगों में एकता को बढ़ावा देना है. भागवत ने सभी की आस्था का सम्मान करने पर जोर दिया और दोहराया कि सभी भारतीयों का डीएनए एक समान है और उनके पूर्वज एक ही थे. उन्होंने कहा, ‘‘विविधता होने के बावजूद हम सभी एक जैसे हैं. हमारे पूर्वज एक ही थे. हर भारतीय जो 40 हजार साल पुराने ‘अखंड भारत’ का हिस्सा हैं, सभी का डीएनए एक है. हमारे पूर्वजों ने यही सिखाया था कि हर किसी को अपनी आस्था और पूजा पद्धति पर कायम रहना चाहिए और दूसरों की आस्था और पूजा पद्धति को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. सब रास्ते एक जगह पर जाते हैं.’
सभी के विश्वास और संस्कारों का सम्मान करें, सबको स्वीकार करें
भागवत ने कहा कि सभी के विश्वास और संस्कारों का सम्मान करें, सबको स्वीकार करें और अपने रास्ते पर चलें. अपनी इच्छा पूरी करे, लेकिन इतना स्वार्थी मत बनें कि दूसरों की भलाई का ध्यान न रहे. सरसंघचालक ने कहा, ‘हमारी संस्कृति हमें जोड़ती है. हम आपस में कितना भी लड़ लें, संकट के समय हम एक हो जाते हैं. जब देश पर किसी तरह की मुसीबत आती है तो हम साथ मिलकर लड़ते हैं. कोरोना महामारी के दौरान इससे निपटने के लिए पूरा देश एक होकर खड़ा हो गया.’
संघ का उद्देश्य सत्य के मार्ग पर चलते हुए लोगों को जोड़ना
उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य लोकप्रियता हासिल करना और अपना प्रभाव बनाना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सत्य के मार्ग पर चलते हुए लोगों को जोड़ना और समाज को प्रभावशाली बनाना है. भागवत ने कहा कि संघ जैसा आज कोई दूसरा नहीं है, संघ को जानना है तो किसी बात से तुलना करके नहीं जान सकते हैं. उन्होंने कहा कि संघ का काम समझना है, तो तुलना करके इसे नहीं समझ सकते हैं, गलतफहमी होने की संभावना होती है. संघ के बारे में पढ़ लिखकर अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि संघ को समझना है तो संघ में आना चाहिए, इससे आप संघ को भीतर से देख सकते हैं, खुद के अनुभव से संघ समझ में आता है.