आखिर आ गई दादाबाड़ी के प्रतिष्ठा की महामंगल शुभ बेला, परमात्मा होंगे गद्दीनशीन
रायपुर
श्री धमंर्नाथ जिनालय एवं जिनकुशल सूरी दादाबाड़ी प्रतिष्ठा महोत्सव में परमात्मा की भव्य दीक्षा बरगोडा (शोभायात्रा) गुरुवार को रत्नपुरी नगरी में निकाली गई जिसमें भक्ति धुन पर समूचा जैन समाज नाच गा रहा था। कोई भी ऐसा सदस्य नहीं होगा जो इसमें शामिल न रहा हो। महिला – पुरूष सदस्य बकायदा डे्रस कोड में थे। रत्नपुरी नगरी के चल जिनालय से प्रारम्भ होकर सुधर्मा स्वामी सभा मंडप तक सकल संघ सुबह गाजे-बााजे के साथ पहुंचा, उसके बाद परमात्मा के संवत्सरिक वषीर्दान, दीक्षा हेतु पंचमुष्टि केश लोचन इन्द्र द्वारा समवसरण की रचना, गणधरो की स्थापना एवं देशना आदि का मंचन किया गया। इससे पहले गच्छाधिपतिश्री का संबोधन व प्रतिष्ठा अंतर्गत विशिष्ठ चढ़ावा हुआ।
गुरुभगवन्तो ने हितोपदेश में बताया कि परमात्मा की प्रतिमा परमात्मा के वियोग में भी भक्तों को प्रभु का साक्षात् मिलन करवाने वाला परम पुष्ट आलम्बन है। उन्होंने बताया कि भगवन से ऐसी प्रार्थना करो की प्रत्येक जन्म में आपके चरण युगल को प्राप्त करके आपकी शरण में स्थान बना लूँ, बस यही एक प्रार्थना, प्रत्येक जन्म में आपकी आज्ञा का पालन करके कर्म रूपी काँटों को निकाल सकूं, मोक्ष में आसान जमा लूं और आत्मा का दर्शन कर सकूं।
गुरुवार को पूरी रात मंदिर के अंदर मंत्रोच्चार एवं प्रतिमा को परमात्मा बनाने का विधान अंजनशलाका पूर्ण हुआ। अंजन शलाका अर्थात ह्रदय सिंहासन पर प्रभु को विराजमान कराने का सफल माध्यम हैं। मध्यरात्रि शुभ मुहूर्त में अधिवासना एवं अंजन निर्माण का कार्य तथा स्वर्ण पात्र में गुरु भगवन्तो को अंजन वोहराई के बाद यह अंजन प्रतिमा में प्राण स्वरुप भरा गया।
आ गई प्रतिष्ठा की महामंगल शुभ बेला
सकल जैन संघ पिछले साढ़े चार वर्ष से जिस घड़ी का इंतजार कर रहा था वह शुभ दिन (शुक्रवार) आ गया। सकल जैन समाज के दिल में बसने वाली एमजी रोड दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा पांच शिखरों की पूजा के साथ प्रात: 5 बजे से प्रारम्भ हो जावेगी। 3 मार्च को प्रात: शुभ लग्न में – पुण्याहं पुण्याहं प्रियनताम प्रियनताम के जय घोष के साथ परमात्मा गद्दीनशीन होंगे, अमर ध्वजा मंदिर के शिखर पर लहरायेगी।
साढ़े चार साल तक मीठा त्याग रखा था, आज पुन: खाना शुरू करेंगे
दादाबाड़ी को वास्तु युक्त बनाने हेतु जैन समाज के बहुत से लोगों ने पिछले साढ़े चार वर्ष से तपस्या की है। मिठाई-शक्कर आदि बहुत सी खाने-पीने की वस्तु का त्याग कर रखा था। उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक दादाबाड़ी की नवनिर्मित प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण नहीं कर लेंगे तब तक मीठे का त्याग करेंगे, नित्य उपवास आदि तप किए और आज उस तप का फल संघ के सामने प्रस्तुत है। शुक्रवार को वे पहले श्रद्धालुजनों को लाप्सी व शाही कारबा मीठा खिलायेंगे फिर खुद पुन: खाना शुरू करेंगे।
परमात्मा के स्वर्ग का मंदिर पृथ्वी लोक में आ गया ऐसा लगता है दादाबाड़ी
प्रतिष्ठा याने अंजन शलाका किए हुए परमात्मा का जिन मंदिर में एक ही स्थान पर हमेशा के लिए स्थिरीकरण, तन के आरोग्य का समीकरण, मन की शांति का दूरीकरण, परमात्मा की प्रतिष्ठा सर्व विघ्नों का का नाश करती है, सर्व मंगलों का सृजन करती है, सर्व दोषों का विसर्जन करती है, यदि प्रभु प्रतिमा नीति युक्त धन से निर्मित हो, यदि शासन प्रभावक निष्ठ सूरिदेव का सुयोग हो, यदि प्रतिष्ठा महोत्सव के आयोजकों दानवीर एवं उदार हो, यदि संघ के कार्यकर्ता नम्र तथा सेवाभावी हो तो इस धरती पर स्वर्ग सुख का अवतरण होना और रायपुर जैन समाज ने इसको चरितार्थ कर दिखाया है। हमने पढ़ा है की स्वर्ग से सुन्दर परमात्मा का दरबार होता है और वो आज जैन दादाबाड़ी को देख कर लगता है, श्वेत पाशान से बनी, कोरनि से घडी, जुगनू की तरह चमकते गलीचों की बिछोनी, रंग मंडप के ऊपर नृत्य एवं वाद्ययंत्र लिए देवियों की हवा में अधर प्रतिमाओं, विशाल बिना खम्बो की निर्मित दादाबाड़ी इन सबको देख कर ऐसा लगता है मानो वास्तव में परमात्मा के स्वर्ग का मंदिर पृथ्वी लोक में आ गया है।