अधिकारियों की मिलीभगत से खाली पड़े वेयर हाउस, सायलो बैग लगाने वालों की चांदी
भोपाल
गेहूं के भंडारण के लिए सरकार ने भले ही प्रदेश भर में वेयर हाउस बनाने का काम तेजी से कराया है लेकिन इसमें सायलो बैग का कारोबार करने वाले मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। जिलों में पदस्थ अधिकारियों की मिलीभगत से वेयर हाउस के जरिये भंडारण करने वाले छोटे कारोबारियों को इसमें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है और उन्हें वेयर हाउस खाली रखने पड़ रहे हैं।
प्रदेश में गेहूं के उपार्जन के बाद भंडारण को लेकर शुरू की गई कवायद के बीच एक बार फिर गांवों में वेयर हाउस तैयार कर सरकार से मिलने वाले किराए से लाभ कमाने वाले किसान और व्यापारी एक्टिव हुए हैं। इनकी पीड़ा यह है कि सरकार ने वेयर हाउस बनवाने के लिए उन्हें सब्सिडी दी लेकिन सायलो बैग ने उनके कारोबार को नुकसान पहुंचाने का काम किया है।
सायलो बैग के बिजनेस में देश प्रदेश के नामी गिरामी उद्योगपति और बिजनेस मैन सक्रिय हो गए हैं और ये स्थानीय अधिकारियों पर दबाव डलवाकर भंडारित किए जाने वाले गेहूं को वेयर हाउस में भिजवाने की बजाय सायलो बैग में रखवाने का काम करते हैं। अधिकारी भी प्रशासनिक और राजनीतिक दबाव के चलते जिस क्षेत्र में सायलो बैग अधिक हैं वहां उन्हें तवज्जो देते हैं।
2 साल के लिए आया सायलो, अब भी जमा
बताया जाता है कि सायलो बैग को पांच साल पहले दो साल के लिए प्रदेश में भंडारण के लिए अनुमति दी गई थी। अब बड़े कारोबारियों की इसमें रुचि के कारण अवधि खत्म होेने के बाद भी इसे पूरी तरह से बंद नहीं किया जा रहा है। इस मामले में खास बात यह है कि सायलो बैग जहां लगाए जाते हैं वहां बारिश के चलते जून से नवम्बर माह तक भंडारित किया गया माल शिफ्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि आवागमन का रास्ता सुगम नहीं होता है।
साथ ही सरकार इन्हें सब्सिडी भी देती है। इसलिए भी कई जिलों में आवक से तीन गुना तक सायलो बैग लग गए हैं। अब तो एक-एक लाख टन कैपिसिटी वाले स्टेनलेस स्टील के भी सायलो बैग लगाए जा रहे हैं। पिछले साल ही सरकार ने 5.70 लाख मीट्रिक टन क्षमता के सायलो बैग लगाने की अनुमति दी है जिसके बाद जबलपुर, सिवनी, शाजापुर, सीहोर, दमोह, शिवपुरी, रीवा, सागर, छतरपुर, पन्ना, सागर जिले के देवरी तहसील, अशोक नगर, दतिया, गुना, सिंगरौली, सीधी, सतना में 30-30 हजार मीट्रिक टन के सायलो गोदाम बनाए जा रहे हैं।
स्टैंड बाय रखते हैं सायलो बैग
उधर इस मामले में वेयरहाउसिंग कारपोरेशन के एमडी दीपक सक्सेना बताते हैं कि पहले की अपेक्षा सायलो बैग का उपयोग कम हुआ है। इसकी वजह किसानों को स्लाट बुकिंग करने के साथ मैपिंग के जरिये भंडारण की सुविधा देना है। शासन का खर्च पहले 70 रुपए प्रति मीट्रिक टन होता था, अब वेयरहाउस को प्राथमिकता देने से 39 रुपए प्रति मीट्रिक टन का खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि सायलो बैग पूरी तरह खत्म नहीं किए जा सकते। इसलिए उन्हें स्टैंड बाय रखा जाता है।
प्रदेश में सात से आठ लाख मीट्रिक टन की सायलो बैग में भंडारित होता है। सक्सेना ने बताया कि इस साल एक अप्रेल से ओपन कैप में गेहूं का भंडारण पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।