September 28, 2024

सऊदी-ईरान की यारी भारत पर पड़ेगी भारी? जानिए चीन के कराए समझौते का क्या होगा असर

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 नई दिल्ली

सात साल के लंबे तनाव के बाद ईरान और सऊदी अरब शुक्रवार को राजनयिक संबंध फिर से बहाल करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हो गए। इस घटनाक्रम पर विशेषज्ञों ने शनिवार को कहा कि इसका पश्चिम एशियाई भू-राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। भारत इस क्षेत्र को अपने विस्तारित पड़ोस के हिस्से के रूप में देखता है। चीन की मदद से मिली इस अहम कूटनीतिक सफलता से दोनों देशों के बीच टकराव की संभावना कम हो गई है। चीन, ईरान और सऊदी अरब ने शुक्रवार को एक त्रिपक्षीय बयान में संबंधों को बहाल किए जाने की घोषणा की। इस डील ने नई दिल्ली में राजनयिक हलकों को चौंका दिया क्योंकि दोनों देशों के बीच बातचीत को काफी हद तक गुप्त रखा गया था। सऊदी विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान ने शनिवार को कहा कि यह व्यवस्था दो साल तक चली वार्ता का परिणाम थी।

चीन की भूमिका चौंकाने वाली
तीनों देशों द्वारा जारी संयुक्त बयान के मुताबिक, सऊदी अरब और ईरान 2016 में टूटे राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करेंगे और दो महीने के भीतर अपने दूतावासों और मिशनों को फिर से खोलेंगे। दोनों देश 2001 में हुए सुरक्षा सहयोग समझौते और 1998 में हुए व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और संस्कृति में सहयोग समझौते को भी पुनर्जीवित करने पर सहमत हुए हैं। वैसे तो यह एक बड़ा घटनाक्रम है लेकिन पश्चिम एशिया पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि अभी यह देखना बाकी है कि दोनों देशों के बीच चीजें कैसे आगे बढ़ती हैं। इसके लिए थोड़ा इंतजार करना चाहिए। समझौते को अंतिम रूप देने में चीन की भूमिका चौंकाने वाली रही। इससे पहले चीन ने इस क्षेत्र की कूटनीति में ऐसी भूमिका कभी नहीं निभाई थी।

सब कुछ काफी गोपनीय रखा गया

सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भारत के दूत के रूप में काम कर चुके तलमीज अहमद भी इस घटनाक्रम से काफी आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कहा, "यह सच में चौंकाने वाला था क्योंकि सब कुछ काफी गोपनीय रखा गया। हमने इसके बारे में कुछ नहीं सुना था। सऊदी अरब और ईरान के बीच पिछली वार्ताओं में वरिष्ठ खुफिया अधिकारी शामिल थे लेकिन ये वार्ताएं उच्च स्तर पर थी।"

सऊदी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मुसाद बिन मोहम्मद अल-ऐबन और सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के ईरान के सचिव एडमिरल अली शामखानी के बीच 6 मार्च से बीजिंग में शुरू हुई पांच दिनों की वार्ता के दौरान इस समझौते पर मुहर लगाई गई थी। दोनों अधिकारी भारत के साथ भी सुरक्षा संबंधों में प्रमुख वार्ताकार रहे हैं।

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