पिछड़ों पर डोरे डालने के लिए भाजपा का ‘सम्राट’ दांव, नीतीश को कमजोर करने में कितना कारगर?
बिहार
भाजपा आलाकमान ने सम्राट चौधरी को बिहार भाजपा की कमान सौंपी है। मात्र आठ साल पहले भाजपा में आए चौधरी कुशवाहा समाज से आते हैं। कुशवाहा समाज जदयू के आधार वोट में शुमार है। भाजपा के सम्राट को अध्यक्ष का दायित्व देने के पीछे जदयू के मजबूत जनाधार वाले इस समाज पर उसका अपना लक्ष्य साधना मकसद माना जा रहा है। गौरतलब है कि अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव भाजपा बिहार में सम्राट चौधरी के नेतृत्व में लड़ेगी। ऐसे में सम्राट चौधरी को सूबे में पार्टी की बागडोर सौंपकर भाजपा ने बड़ा दांव खेला है। वैसे जदयू ने दो साल पहले इसी समाज के उमेश सिंह कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी। वह अब भी बने हुए हैं।
सत्तारूढ़ महागठबंधन के मुख्य घटक दलों जदयू और राजद की बात करें तो राजद के कोर वोटर मुस्लिम और यादव हैं। भाजपा यह समझ चुकी है कि वह राजद के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकती। इसलिए वह जदयू के कोर वोटर कुशवाहा को तोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। वैसे तो जदयू को अतिपिछड़ों का समर्थन प्राप्त रहा है, लेकिन सामाजिक समीकरणों में पैठ के लिहाज से लव- कुश (कुर्मी-कुशवाहा) को जदयू का कोर समर्थक माना जाता है। इसमें से कुशवाहा पर भाजपा पहले से निशाना साध रही है।
माना जाता है कि इसी कड़ी में भाजपा के सियासी दांव के तहत वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा जदयू से अलग हुए। जिस तरह जदयू से हटते ही उपेंद्र कुशवाहा को वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई। उससे यह स्पष्ट संदेश गया कि उपेंद्र की पीठ पर भाजपा का हाथ है और उनका भाजपा का दामन थामना महज वक्त की बात है। अब सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा कुशवाहा समुदाय से एक और बड़ा चेहरा सामने लाई है। सम्राट पहले राजद में थे। वहां से वह जदयू में गए और मंत्री भी बने। इसके बाद वह भाजपा में आए और एनडीए सरकार में पंचायती राज मंत्री बने। सम्राट के पिता शकुनी चौधरी भी राजद में थे और लम्बे समय तक मंत्री रहे।
सम्राट चौधरी आक्रामक शैली की सियासत करते हैं। भाजपा में आने के बाद नित्यानंद राय की कमेटी में उनको प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया था। वहीं, अगस्त, 2022 में भाजपा सत्ता से हटी तब भी सम्राट का असर कायम रहा और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। वैसे तो बिहार भाजपा की पूरी इकाई सरकार पर हमलावर रहती है, लेकिन सम्राट इस फील्ड में दूसरे नेताओं की तुलना में ज्यादा असरदार माने जाते हैं। भाजपा के सत्ता से हटने के बाद सम्राट चौधरी ने माथे पर केसरिया पगड़ी बांध ली। उनका संदेश है कि भाजपा अपने दम पर बिहार में सरकार बनाएगी, तभी पगड़ी हटाएंगे।
बिहार में सवर्णों को भाजपा का समर्थक जबकि, अति पिछड़ों पर जदयू का दबदबा माना जाता है। पिछड़े समुदाय में अलग-अलग जातियां भिन्न-भिन्न दलों की समर्थक मानी जाती हैं। नित्यानंद राय और संजय जायसवाल के बाद सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर भाजपा ने यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि पिछड़ा समाज उसकी प्राथमिकता में है। यूपी की तर्ज पर गैर ‘माई’ वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा का यह दांव कितना प्रभावी होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
मालूम हो कि मंगल पांडेय के बाद सूबे में पार्टी की जिम्मेदारी संभालने वाले सम्राट पिछड़े समुदाय के तीसरे नेता हैं। वहीं, नित्यानंद राय और डॉ. संजय जायसवाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं लेकिन सम्राट चौधरी की पृष्ठभूमि संघ की नहीं है। बिहार की वर्तमान राजनीति चुनौतियों और सामाजिक समीकरण साधने के लिहाज से भाजपा ने सम्राट चौधरी को एक विकल्प के तौर पर पेश किया है।