लालू प्रसाद स्वास्थ्य होकर लौटे बिहार, अब महागठबंधन करना होगा स्वास्थ्य
पटना
लालू प्रसाद स्वास्थ्य लाभ लेकर बिहार लौटे हैं, मगर महागठबंधन का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा। जेल मैनुअल में संशोधन कर बिहार पीपुल्स पार्टी के फाउंडर आनंद मोहन को जेल से बाहर निकाल दिया गया। ये फैसला महागठबंधन सरकार के लिए एक नई समस्या बन गई है। अपरोक्ष रूप से तो इस फैसले का विरोध हो ही रहा है, कुछ दलों ने तो खुल कर मुखालफत शुरू कर दी है। ये कोई पहला मौका नहीं है, जब महागठबंधन के साथी दल भी सरकार के फैसले के विरुद्ध खड़े हो। ऐसे कई मुद्दे हैं जिसको लेकर महागठबंधन के दलों में काफी नाराजगी है। जाहिर है स्वास्थ्य लाभ कर रहे लालू प्रसाद का आने वाले दिनों में महागठबंधन के स्वास्थ्य की भी सुध लेनी होगी।
भले नीतीश कुमार ने अपरोक्ष रूप से राजपूत वोट को साधने के लिए आनंद मोहन को जेल से बाहर करने का क्रेडिट लेना चाह रहे हो। लेकिन अब ये फैसला उनके ही गले की फांस गई। हो ये रहा कि विपक्ष पहले ही राज्य सरकार के जेल मैनुअल में संशोधन का विरोध कर रही है, अब तो सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाकपा-माले खुलकर सरकार के फैसले के विरोध में उतर आई है। माले विधायक सत्येंद्र यादव ने कहा कि जिस तरह से एक खास व्यक्ति के लिए सरकार ने नियम बदले हैं, उससे राज्य के पिछड़ों, अति पिछड़ों और अकलियतों में गलत मेसेज गया है। उन्होंने कहा कि टाडा कानून के तहत कई गरीब, पिछड़े और अकलियत के लोग जेलों में बंद हैं। उन्हें छोड़ने के लिए कहा मगर नहीं सुना गया।
सातवें चरण की शिक्षक बहाली को लेकर राज्य सरकार ने जो नई नियमावली बनाई है, उसका भी जमकर विरोध वाम दल कर रहे हैं। वाम दल इस बात को लेकर नाराज हैं कि जिसने बीएड किया, टीईटी पास की अब उसे बीपीएससी की परीक्षा देने के लिए बाध्य करना नाइंसाफी है। इनका कहना है कि पिछले चार वर्ष से शिक्षक बनने का इंतजार कर रहे लोगों के सपने पर कुठाराघात है। उन्होंने कहा राज्यकर्मी बनने के लिए कोई अन्य तरीके निकाले जाएं। वाम दल इतने नाराज हैं कि एक मई को शिक्षक संघ प्रतिरोध मार्च कर रहे हैं। अगर सरकार नहीं सुनेगी तो इनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा और ये सिलसलेवार तरीके से आंदोलन करते रहेंगे।
आनंद मोहन प्रकरण के बाद वाम दलों ने उन लोगों की चिंता से राज्य सरकार को अवगत कराया है, जहां पिछड़े और दलित शराब पीने के मामले या बनाने के मामले में जेल में बंद हैं। वाम दलों की मांग है कि उन्हें भी छोड़ा जाए, जो इसके असली मुजरिम हैं, वे जेल से बाहर हैं। ये सरकार की दोहरी नीति को बताता है। सरकार की प्रतिबद्धता इन लोगों के साथ होनी चाहिए थी, लेकिन एक खास व्यक्ति से अपने व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थ को उन्होंने ज्यादा अहमियत दी। वाम दलों ने मौजूदा सरकार को बाहर से समर्थन दिया है। ये समर्थन भी सिर्फ भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए है। अगर सरकार हमारी मांगों पर विचार नहीं करती है, तो सड़क से सदन तक हमलोग आंदोलन करेंगे।
दरअसल, जगदानंद सिंह ने प्रदेश कार्यकारिणी की जो घोषणा की, उसमें एमवाई को वोट बैंक के अनुकूल हिस्सेदारी नहीं मिली है। इस बात से राजद के कई शीर्ष नेताओं में नाराजगी है। बात ये है कि संगठन में एमवाई की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक होती थी। इसकी वजह भी थी कि राजद के आधार वोट यानी एमवाई तकरीबन 30-35 प्रतिशत अपनी निरंतरता के साथ राजद के लिए सुनिश्चित रहा।
पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि ने भी राज्य सरकार को इस बात के लिए चेताया कि ये काफी गलत कदम है। आनंद मोहन की रिहाई से भाजपा मजबूत होगी। भाजपा को इससे 25 प्रतिशत वोट का फायदा होने जा रहा है। राज्य सरकार ने जो जेल मैनुअल में परिवर्तन किया है, वो गलत है। इसे मानवीय और राजनीतिक रूप से नहीं सोचना चाहिए। एक चौथाई आबादी का विरोध नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के लिए भरी पड़ेगा। प्रेम कुमार मणि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके हैं। बहरहाल, लालू प्रसाद के लिए बिहार समस्याओं के जखीरे पर बैठा है। अब उनकी जितनी राजनीतिक दक्षता है, उसी के सहारे महागठबंधन को भाजपा के विरुद्ध मजबूती से खड़ा करना हैं। अब देखना ये है कि खुद बीमार लालू प्रसाद यादव इलाज का कौन-सा रास्ता निकाल पाते हैं?