November 30, 2024

थाइलैंड में आम चुनाव में विपक्षी दलों को बड़ी जीत, नए प्रधानमंत्री पर तस्वीर अब भी साफ नहीं

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 थाइलैंड के मुख्य विपक्षी दलों ने  हुए आम चुनाव में शानदार जीत दर्ज की है। इसे 2014 के तख्तापलट के जरिये मौजूदा प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओचा के सत्ता में आने के नौ साल बाद बदलाव के एक अहम मौके के रूप में देखा जा रहा है।

 99 प्रतिशत मतों की गिनती के साथ विपक्षी दल ‘मूव फॉरवर्ड पार्टी’ ने एक अन्य विपक्षी दल ‘फेयु थाई पार्टी’ पर छोटी-सी बढ़त हासिल कर ली है।

हालांकि, कहा नहीं जा सकता कि रविवार को हुए चुनाव का विजेता सरकार बना पाएगा। नए प्रधानमंत्री के चयन के लिए जुलाई में 500 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा और 250 सदस्यीय सीनेट का संयुक्त सत्र बुलाया जाएगा। इस प्रक्रिया को व्यापक रूप से अलोकतांत्रिक माना जाता है क्योंकि सीनेटर का चयन सेना द्वारा किया जाता है।

मतदान में करीब 75 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं ने वोट डाले।

मूव फॉरवर्ड पार्टी ने प्रतिनिधि सभा के लिए 24 प्रतिशत से कुछ अधिक मत हासिल किए जबकि फेयु थाई पार्टी ने 23 प्रतिशत मत हासिल किए हैं।

निर्वाचन आयोग के अनुसार, मूव फॉरवर्ड पार्टी ने 113 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि फेयु थाई पार्टी ने 112 सीटों पर जीत हासिल की है।

निवर्तमान प्रधानमंत्री प्रयुत चान ओचा की ‘यूनाइटेड थाई नेशनल पार्टी’ करीब नौ प्रतिशत मत पाने के साथ ही पांचवें स्थान पर है।

चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में तीन दलों के नयी सरकार का नेतृत्व करने की संभावना जतायी गयी थी। पूर्व अरबपति प्रधानमंत्री थाकसिन शिनवात्रा की 36 वर्षीय बेटी पेतोंगतार्न शिनवात्रा को चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में ज्यादातर लोगों ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा जतायी थी।

सेना ने 2006 में तख्तापलट कर थाकसिन को सत्ता से बेदखल कर दिया था। उनकी रिश्तेदार यिंगलुक शिनवात्रा 2011 में प्रधानमंत्री बनी थीं, लेकिन प्रयुत की अगुवाई में तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था।

फेयु थाई पार्टी ने 2019 के चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीती थीं, लेकिन उसकी चिर प्रतिद्वंद्वी एवं सेना समर्थित पलांग प्रचारत पार्टी ने प्रयुत के साथ गठबंधन कर लिया था।

अब मूव फॉरवर्ड के नेता 42 वर्षीय कारोबारी पिटा लिमजारोएनरत भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार दिखायी देते हैं।

प्रधानमंत्री प्रयुत पर लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, महामारी से निपटने में रही खामियों को दूर न कर पाने और लोकतांत्रिक सुधारों को विफल करने का आरोप है।

 

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