September 30, 2024

जनजातियों ने निपानिया की चिरौंजी को दिलाई पहचान

0

भोपाल

जनजातीय समुदाय की आजीविका का एक महत्वपूर्ण जरिया वनोपज की बिक्री है। जनजातीय आबादी वन क्षेत्रों से महुआ, गोंद, लाख, अचार, चिरौंजी आदि का वन क्षेत्रों से संग्रहण कर जीविकोपार्जन करती हैं। भण्डारण, विपणन और मार्केटिंग स्किल के अभाव में इन्हें अपनी वनोपज औने-पौने दाम पर स्थानीय व्यापारियों को बेचना पड़ती थी। वर्तमान में सरकार की जनजाति हितैषी योजनाओं और वनोपज के समर्थन मूल्य तय करने, वनोजन की सरकारी खरीदी, वनोजन के भंडारण और प्र-संस्करण सहित सरकार द्वारा वनोपज के विपणन की पर्याप्त व्यवस्थाएँ करने से जनजाति आबादी अब वनोपज संग्रहण कर अच्छा लाभ अर्जित कर रही हैं।

जनजातियों ने निपनिया की चिरौंजी को दिलाई पहचान

प्रोसेसिंग यूनिट से जनजातियों की बढ़ी कमाई

महंगे ड्राई फ्रूट्स में शामिल चिरौंजी की प्रोसेसिंग और बेहतर पैकेजिंग कर इसकी खुले बाजार में ब्रिकी कर कटनी जिले के निपनिया और केवलारी का ग्रामीण जनजाति समुदाय समृद्धि की नई इबारत लिख रहा है। यहाँ चिरौंजी की प्रोसेसिंग इकाई लगने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि जनजातियों को बहला-फुसलाकर कम कीमत में चिरौंजी की गुठली खरीदने वाले व्यापारियों और बिचौलियों से ग्रामीणों को मुक्ति मिल गई है और अब वे ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं।

निपनिया गाँव की प्रसिद्ध वनोपज चिरौंजी की बेहतर गुणवत्ता की वजह से बाजार में इसकी खासी मांग है। निपनिया और केवलारी गाँव में अचार वृक्ष बहुतायत में हैं। पहले व्यापारी और बिचौलिये जनजाति समुदाय से काफी कम कीमत पर इसे खरीद लेते थे। इससे जनजातियों के बजाय व्यापारियों को सीधा फायदा होता था। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से गाँव में रानी दुर्गावती बहुउद्देशीय सहकारी समिति का गठन कर बैंक से चिरौंजी प्र-संस्करण इकाई स्थापित कराई गई। जिससे प्र-संस्करण और पैकेजिंग कर समिति अब 100-100 ग्राम के चिरौंजी के पैकेट 180 रुपये मूल्य पर विक्रय रही हैं। इससे जनजातीय ग्रामीण को सीधा मुनाफा मिल रहा है और वे आत्मनिर्भर हो रहे हैं।

ब्राण्ड बनेगी निपनिया चिरौंजी

निपनिया की चिरौंजी की पूरे देश में ब्राडिंग की जायेगी। साथ ही उत्पादन बढ़ाने, अचार के पौधों के सघन पौध-रोपण की भी योजना है जिससे भविष्य में जनजाति वर्ग अधिक आय अर्जित कर सके।

दोनों गांवों को मिला कर करीब साढ़े 600 की आबादी वाले गाँव में चिरौंजी के 500 से 600 वृक्ष हैं। इनसे प्रतिवर्ष करीब 6 हजार किलो चिरौंजी निकलती है। जिसे बाजार में 1600 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचने पर समिति को 24 लाख रूपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हो रहा है।

जनजातीय समुदाय के मदन सिंह और उर्मिला बाई ने बताया कि अधिकारियों की मदद से प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के बाद से हमें मुनाफा होने लगा है, जबकि पहले हम चिरौंजी की गुठलियों को एकत्रित करके सीधे व्यापारी को बेच देते थे। इससे हम लोगों को तो कम पैसा मिलता था, लेकिन व्यापारी दोगुने से अधिक लाभ कमाता था। लेकिन अब हम अच्छी कीमत पाकर खुश हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *