September 29, 2024

इन राज्यों के बिना INDIA को कैसे मिलेगी भारत में जीत, 210 सीटों पर खुद बिगाड़ रहे गणित

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नई दिल्ली
भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष का काफिला पटना से बेंगलुरु तक पहुंच गया है। पहली मीटिंग में एक रहने पर सहमति बनी तो दूसरी बैठक में नाम तय हो गया और अब 11 लोगों की संयोजन समिति बनेगी। इनके नाम तय करने और आगे की रणनीति पर बात करने के लिए मुंबई में अगली मीटिंग होगी। भले ही विपक्षी महागठबंधन का नाम INDIA रखकर उत्साहित है और प्रचार में जुटा है, लेकिन कई राज्यों में राह आसान नहीं है। यही नहीं उन राज्यों में एकजुटता के लिए जरूरी पहल भी नहीं दिखती। इनमें उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार शामिल हैं। इन 4 राज्यों से ही 210 सीटें आती हैं।

'INDIA' पर सवाल उठाने वाले अकेले नहीं CM कुमार, केजरीवाल का क्या विचार
उत्तर प्रदेश की अहम पार्टी बसपा को विपक्ष के INDIA में जगह नहीं मिल पाई है। जयंत चौधरी भले ही मीटिंग में शामिल हुए हैं, लेकिन विकल्प खुले रखे हैं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन भी आसान नहीं होगा क्योंकि अखिलेश बड़े दलों पर भरोसा ना करने की बात लगातार कहते रहे हैं। वहीं भाजपा यहां पर ओमप्रकाश राजभर, संजय निषाद की पार्टी को साथ लेकर चल रही है। अपना दल का भी साथ उसके पास है। इस तरह अपने परंपरागत वोट बैंक के अलावा वह ओबीसी जातियों का भी एक गुलदस्ता समय से पहले ही तैयार करने में जुटी है।

बसपा विपक्षी एकता से अलग रही तो क्या होगा?
इसके बरक्स विपक्ष कमजोर नजर आता है। 2019 में 20 फीसदी वोट हासिल करने वाली बसपा यदि एकता से अलग रहती है तो नतीजा चिंताजनक हो सकता है। यही नहीं 40 सीटों वाले बिहार में भी अब स्थिति बदल रही है। अब तक विपक्षी एकता और उसका सामाजिक समीकरण भाजपा के मुकाबले 20 नजर आ रहा था। लेकिन जिस तरह बीते कुछ महीनों में उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और चिराग पासवान जैसे नेताओं ने भाजपा का रुख किया है, उससे वह भी वापसी करती दिख रही है। वहीं नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला महागठबंधन पुराने साथियों को जोड़े रखने में असफल रहा है। यहां महागठबंधन को समय रहते ही सीट शेयरिंग जैसी चीजों पर काम करना होगा।

महाराष्ट्र में एक साल में बदलने लगी तस्वीर, NCP-शिवसेना क्या करेंगे?
अब बात महाराष्ट्र की करें, जहां 48 सीटें हैं। वहां भी एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का मजबूत गठबंधन है। तीनों का राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में जनाधार रहा है। ऐसे में भाजपा को कड़ी चुनौती मिलने के आसार थे। लेकिन बीते एक साल से जिस तरह शिवसेना और एनसीपी में फूट हुई है, उस हालात में यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में क्या होता है। यदि शिवसेना बनाम शिवसेना और एनसीपी बनाम एनसीपी ही कई सीटों पर हो गया तो फिर भाजपा के लिए राह बहुत कठिन नहीं होगी।

बंगाल में ममता के रुख से क्यों बढ़ रही परेशानी
अब बात बंगाल की करें तो यहां ममता बनर्जी कांग्रेस और लेफ्ट को बहुत ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं हैं। वह पहले ही कह चुकी हैं कि जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां कांग्रेस को उन्हें ही मौका देना चाहिए। ऐसे में पूरी संभावना है कि वह सीट शेयरिंग की बात पर कांग्रेस को ज्यादा अहमियत नहीं देंगी। फिर ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव के लिए चेहरा भी नहीं हैं। ऐसे में बंगाली अस्मिता पर वोट पड़ेगा या फिर भाजपा के राष्ट्रवाद को बढ़त मिलेगी, यह देखने वाली बात है। कुल मिलाकर 4 राज्यों की 210 सीटें आम चुनाव में INDIA बनाम NDA की लड़ाई का रुख तय कर देंगी।

 

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