November 26, 2024

पहले चरण में दांव पर 223 उम्मीदवारों की किस्मत

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राजनांदगांव.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर पहले चरण में 7 नवंबर को 20 सीटों के लिए  वोटिंग होगी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण संभाग बस्तर है, जहां से कुल 90 सीटों में से 12 सीटें आती हैं। आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में कुल सात जिले आते हैं। सात जिलों के संभाग में यहां छत्तीसगढ़ की 12 विधानसभा और एक लोकसभा सीट है। बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में 11 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) और एक सीट सामान्य है। इनमें बस्तर, कांकेर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोंटा, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर की सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। वहीं जगदलपुर विधानसभा सीट सामान्य है। वर्तमान में 12 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहीं से करारी हार का सामना करना पड़ा था और सत्ता गंवानी पड़ी थी। राजनीतिक दृष्टिकोण से बस्तर संभाग काफी अहम माना जाता है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी बस्तर संभाग से खुलती है। इसलिए माना जाता है कि अगर छत्तीसगढ़ में सरकार बनानी है, तो बस्तर किला पर फतह हासिल करना बहुत जरूरी है। प्रदेश में कुल 90 विधानसभा सीट हैं, जिनमें 39 सीटें आरक्षित हैं। 39 में से  29 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं । 29 में से 12 सीटें बस्तर संभाग से आती हैं। 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही बीजेपी को साल 2018 में यही से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था, इसलिए बीजेपी में सत्ता पाने की बैचेनी है। बस्तर में पीएम मोदी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, जेपी नड्डा, बीजेपी प्रदेश प्रभारी ओपी माथुर समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता दौरा कर चुके हैं। बस्तर संभाग के रहवासियों की मुख्य आय का स्त्रोत वनोपज और खेती-किसानी है।

बस्तर संभाग में 12 विधानसभा सीटों का सियासी समीकरण-
बस्तर: इस सीट से इस बार बीजेपी प्रत्याशी मनीराम कश्यप के सामने कांग्रेस प्रत्याशी लखेश्वर बघेल चुनाव लड़ रहे हैं। वह दो बार के विधायक रह चुके हैं। वह साल 2018 का चुनाव काफी बड़े अंतर से जीते थे। वहीं मनीराम पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। वो तीन बार जिला पंचायत सदस्य और उपाध्यक्ष रह चुके हैं। यहां कुल मतदाता 167635 हैं। इसमें पुरुष 81184 और महिला 86449 हैं। वहीं ट्रांसजेंडर 2 हैं।

जगदलपुर: इस सीट से इस बार से बीजेपी प्रत्याशी किरणदेव सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी जतिन जायसवाल चुनाव लड़ रहे हैं। वर्तमान में दोनों के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। दोनों नगर निगम में पूर्व महापौर रह चुके हैं। किरण सिंहदेव की पहली बार चुनावी मैदान में हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 205953 है। इनमें पुरुष  98778, महिला 107144 और ट्रांसजेंडर मतदाता 31 हैं।

नारायणपुर: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी केदार कश्यप के सामने कांग्रेस प्रत्याशी चंदन कश्यप चुनाव लड़ रहे हैं। केदार कश्यप दो बार विधायक और पूर्व मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में भाजपा के महामंत्री हैं। वहीं चंदन कश्यप पहली बार के विधायक हैं। उन्होंने 2018 में केदार को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 190672 है। इनमें पुरुष 92030, महिला 98639 और ट्रांसजेंडर मतदाता 3 हैं।

कांकेर:  इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी आशाराम नेताम के सामने कांग्रेस प्रत्याशी शंकर ध्रुव चुनाव लड़ रहे हैं। नेताम पहली बार चुनाव मैदान में है। वे ग्रामीण मंडल मंत्री हैं। वहीं शंकर ध्रुव ग्राम पंचायत मुड़पार के सरपंच रह चुके हैं। पहली बार 2013 में विधायक बने। यहां कांग्रेस और बीजेपी में टक्कर दिख रही है। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 87161 है। इनमें पुरुष 87161, महिला  95082 और ट्रांसजेंडर मतदाता 2 हैं।

कोंडागांव: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी लता उसेंडी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी मोहन मरकाम चुनाव लड़ रहे हैं। साल 2003 से भाजपा की लता उसेंडी विधायक बनीं। 2008 में भी वो दोबारा जीतीं। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहन मरकाम ने लता को हराकर विधायकी पर कब्जा कर लिया। 2018 में भी वे दोबारा जीतकर आए। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 188520 हैं। इनमें पुरुष 91044, महिला  97473 और ट्रांसजेंडर मतदाता 3 हैं।

केशकाल: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी नीलकंठ टेकाम के सामने कांग्रेस प्रत्याशी संतराम नेताम चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व आईएएस ऑफिसर टेकाम पहली बार चुनाव मैदान में हैं। इस सीट से नए चेहरे हैं। वहीं संतराम नेताम 2013 में विधायक बने। 17 साल तक पुलिस विभाग में सेवाएं दे चुके हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 206304 है। इनमें पुरुष 100230, महिला  106070 और ट्रांसजेंडर मतदाता 4 हैं। क्योंकि बीजेपी प्रत्याशी को चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिल चुका है।

दंतेवाड़ा:  इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी चेतराम अटामी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी छविंद्र महेंद्र कर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। अटामी 2015 से 2020 तक जिला पंचायत सदस्य रहे। दंतेवाड़ा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता महेंद्र कर्मा की परंपरागत सीट रही है। वर्तमान में दंतेवाड़ा विधानसभा सीट से कांग्रेस से देवती कर्मा विधायक हैं। देवती कर्मा बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं, जिन्हें नक्सलियों ने झीरम घाटी मे गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस बार कांग्रेस ने देवती कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा को टिकट दिया है। इस सीट पर हुए पिछले 4 विधानसभा चुनावों में तीन बार कांग्रेस की जीत हुई, जबकि एक बार बीजेपी की जीत हुई है। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 192323 है। इनमें पुरुष 90084, महिला 102237 और ट्रांसजेंडर मतदाता 2 हैं।

अंतागढ़: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी विक्रम उसेंडी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी रुप सिंह पोटाई चुनाव लड़ रहे हैं। उसेंडी पूर्व सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। रमन सरकार में 2008 में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वहीं पोटाई सरपंच संघ के पूर्व अध्यक्ष और आदिवासी कमेटी जिला उपाध्यक्ष रह चुके हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 175965 है। इनमें पुरुष 88512, महिला 87445 और ट्रांसजेंडर मतदाता 8 हैं।  

भानुप्रतापपुर: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी गौतम उईके के सामने कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मंडावी चुनाव लड़ रहे हैं। उईके पहली बार चुनाव मैदान में हैं। वे 2000 से 2015 तक जनपद सदस्य रह चुके हैं। वहीं सावित्री मंडावी पूर्व विधायक मनोज मंडावी की पत्नी हैं। वो उपचुनाव में जीत हासिल की थीं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 201826 है। इनमें पुरुष 98549, महिला 104275 और ट्रांसजेंडर मतदाता 2 हैं।  

कोंटा:  इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी सोयम मुका के सामने कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट से वर्तमान मंत्री और विधायक कवासी लखमा के नाम पांच बार विधायक बनने का रिकार्ड है। वो छठवीं बार चुनाव मैदान में हैं। बस्तर चार बार विधायक बनने वालों में कांग्रेस के झितरूराम बघेल का नाम आता है। उन्हें छोड़ दिया जाए तो अन्य कोई भी दल प्रत्याशी तीन बार से अधिक चुनाव नहीं जीत सका है। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 190672 है। इनमें पुरुष 92030, महिला 98639 और ट्रांसजेंडर मतदाता 3 हैं।

चित्रकोट: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी विनायक गोयल के सामने कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज चुनाव लड़ रहे हैं। वो दो बार 2013 और 2018 के विधायक हैं। साल 2019 में पहली बार बस्तर से सांसद बने और वर्तमान में आदिवासी चेहरा होने से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। युवा चेहरे हैं। वहीं गोयल पहली बार विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। वो तोकापाल मंडल उपाध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 177432 है। इनमें पुरुष 83471, महिला 93959 और ट्रांसजेंडर मतदाता 2 हैं।

बीजापुर: इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी महेश गागड़ा के सामने कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मंडावी चुनाव लड़ रहे हैं। मंडावी पहली बार के विधायक हैं। वर्तमान में वो बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। वहीं महेश गांगड़ा रमन सरकार में पूर्व मंत्री रह चुके हैं। अनुसूचित जाति जनजाति के राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 168991 है। इनमें पुरुष 81426, महिला 87557 और ट्रांसजेंडर मतदाता 8 हैं। बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर हैं।

बस्तर संभाग के स्थानीय मुद्दे
बस्तर संभाग में सबसे बड़ा मुद्दा और समस्या नक्सलवाद है। नक्सलियों के विरोध के चलते सरकारी भवन और सड़क निर्माण का कार्य लंबे समय से ठप है। आए दिन नक्सली वारदात होने से विकास कार्य प्रभावित हैं। यहां के अंदरुनी इलाकों में स्वास्थ्य का बुरा हाल है। ऐसे कई ग्रामीण इलाके हैं जहां स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। इस वजह से ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल चलकर मरीजों को कंधे या कावड़ में रखकर स्वास्थ केंद्रों और अस्पतालों तक पहुचाना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोड, नाली, पानी की समस्या लंबे समय से है। कई पंचायतों में हाई स्कूल तक नहीं बने हैं। संभाग में बेरोजगारी समस्या है। कई युवा शिक्षित बेरोजगार हैं। कम फैक्ट्री होने से अधिकांश युवा कुली मजदूरी पर ही निर्भर हैं।

बस्तर संभाग में 7 जिले

    बस्तर
    कांकेर
    दंतेवाड़ा
    बीजापुर
    नारायणपुर
    सुकमा
    कोंडागांव

बस्तर संभाग में 12 विधानसभा सीटें

    बस्तर
    जगदलपुर
    कांकेर
    चित्रकोट
    दंतेवाड़ा
    बीजापुर
    कोंटा
    केशकाल
    कोंडागांव
    नारायणपुर
    अंतागढ़
    भानुप्रतापपुर

    11 सीटें एसटी के लिए आरक्षित
     केवल 1 सीट जगदलपुर सामान्य
    वर्तमान में 12 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा
     प्रदेश में 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित, इनमें 12 सीटें बस्तर संभाग से ही हैं।

बस्तर संभाग की वीआईपी सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस के ये प्रत्याशी हैं आमने-सामने-

    नारायणपुर से बीजेपी प्रत्याशी केदार कश्यप के सामने कांग्रेस प्रत्याशी चंदन कश्यप
    कोंडागांव से बीजेपी प्रत्याशी लता उसेंडी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी मोहनलाल मरकाम
    केशकाल से बीजेपी प्रत्याशी नीलकंठ टेकाम के सामने कांग्रेस प्रत्याशी संतराम नेताम
    दंतेवाड़ा से बीजेपी प्रत्याशी चेतराम अरामी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी छविंद्र महेंद्र कर्मा
    अंतागढ़ से बीजेपी प्रत्याशी विक्रम उसेंडी के सामने कांग्रेस प्रत्याशी रुप सिंह पोटाई
    कोंटा से बीजेपी प्रत्याशी सोयम मुका के सामने कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा
    चित्रकोट से बीजेपी प्रत्याशी विनायक गोयल के सामने कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज
    बीजापुर से बीजेपी प्रत्याशी महेश गागड़ा के सामने कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मंडावी

क्या कहता है राजनांदगांव जिले का जातीय समीकरण?
इस जिले में पिछड़ा वर्ग में साहू समाज की अच्छी खासी आबादी है। यही मतदाता हार जीत का आंकड़ा तय में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी पिछड़ा वर्ग की है, जिसमें साहू, लोधी, यादव और अन्य शामिल हैं। इसके साथ ही सामान्य वर्ग की भी आबादी अच्छी खासी है। इसी वजह से राजनीतिक पार्टियां ओबीसी फैक्टर को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ती हैं। समाज से जुड़े लोगों को देखते हुए रणनीति तैयार करती हैं, जिसका सीधा फायदा प्रत्याशी को मिलता है। राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में अधिकतर आबादी शहरी है। इस कारण शहरी क्षेत्र में पार्टियों का फोकस रहता है। इस विधानसभा सीट में एक बड़ी आबादी ओबीसी की है इसलिए ओबीसी वोटर्स को साधने का काम राजनीतिक पार्टियां करने में लगी हैं। राजनांदगांव विधानसभा सीट में जातिगत समीकरण की बात करें, तो यहां सामान्य,ओबीसी फैक्टर हावी है। यही जीत तय करते हैं।
राजनांदगांव जिले में स्थानीय मुद्दे
स्थानीय मुद्दों की बात करें तो शिक्षा, रोजगार और मूलभूत सुविधाओं को लेकर मतदाता इस बार भी मतदान करेंगे। विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे भी यहां प्रमुख रहेंगे। जिसमें राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में भाजपा शासनकाल में हुए कई निर्माण कार्य जो कि अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं। जिले में युवाओं को रोजगार देने के लिए एक भी बड़ा उद्योग नहीं है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में उद्योगों की स्थापना और युवाओं को रोजगार के मुद्दे को लेकर सरकार में आई थी। राजनांदगांव विधानसभा में भी रोजगार और उद्योगों की स्थापना सहित अधूरे पड़े निर्माण कार्य को पूर्ण करना ही इस विधानसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा रहेगा, जिसको लेकर जनता वोट करेगी। इस बार भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर नजर आएगी।
राजनांदगांव जिले की 4 विधानसभा सीटों का सियासी समीकरण-
राजनांदगांव: इस सीट से इस बार बीजेपी प्रत्याशी रमन सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन चुनाव लड़ रहे हैं। राजनांदगांव विधानसभा सीट में कुल मतदाताओं की संख्या 211407 है, जिसमें पुरुष 103705, महिला 107700 और थर्ड जेंडर 2 मतदाता 2 हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह इस विधानसभा सीट से लगातार तीन बार से विधायक हैं। साल 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सीट पर कब्जा किया। इस कारण इस सीट में बीजेपी की मजबूत पकड़ है। कांग्रेस भी इस को जीतने लगातार प्रयास कर रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी की भांजी करुणा शुक्ला कांग्रेस से राजनांदगांव विधानसभा सीट से प्रत्याशी थीं और रमन सिंह को कड़ी टक्कर दी थीं। पूर्व मुख्यमंत्री महज 17000 वोटों के अंतर से ही जीत पाए थे। इस बार भी कांग्रेस पूरी तैयारी के साथ चुनावी रण में है। राजनांदगांव विधानसभा सीट बीजेपी का अभेद किला माना जाता है। कांग्रेस प्रत्याशी और किसान नेता गिरीश देवांगन नए चेहरे हैं।
डोंगरगढ़:  इस सीट से इस बार बीजेपी प्रत्याशी विनोद खांडेकर के सामने कांग्रेस प्रत्याशी हर्षिता स्वामी बघेल चुनाव लड़ रही हैं। खांडेकर 2003 में पहली बार विधायक बने थे। वहीं हर्षिता वर्तमान में राजनांदगांव जिला पंचायत सदस्य हैं। यहां कुल मतदाता  209648 हैं, जिसमें पुरुष 105600 , महिला 104044 और ट्रांस जेंडर 4 हैं। यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। साल 2018 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के भुनेश्वर बघेल ने बाजी मारी थी। उनके मुकाबले में भाजपा की तरफ से सरोजनी बंजारे को टिकट दिया गया था। कांग्रेस चुनावी लड़ाई को एकतरफा बनाते हुए 35 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीती थी। भाजपा को महज 51 हजार वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को 86 हजार से अधिक वोट मिले थे।
डोंगरगांव: इस सीट से इस बार बीजेपी प्रत्याशी भरतलाल वर्मा के सामने कांग्रेस प्रत्याशी दिलेश्वर साहू चुनाव लड़ रहे हैं। भरतलाल पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। वे वर्तमान में बीजेपी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वहीं दिलेश्वर साहू दूसरी बार के विधायक हैं। यहां कुल मतदाता 202631 हैं, जिसमें पुरुष मतदाता 101976, महिला 100655 और ट्रांसजेंडर 0 मतदाता हैं। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों का पर वर्चस्व रहा है। पिछले दो विधानसभा चुनावों से कांग्रेस प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं। इस बार के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में सीधी टक्कर देखी जा रही है। साल 2018 में कांग्रेस के दिलेश्वर साहू को 84,581 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी के मधुसूदन यादव को 65,498 ही मत मिल थे।
खुज्जी: इस सीट से इस बार बीजेपी प्रत्याशी गीता घासी साहू के सामने कांग्रेस प्रत्याशी भोलाराम साहू चुनाव लड़ रहे हैं।  गीता साहू पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। वह जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। वहीं भोलाराम 2008 में विधायक रह चुके हैं और 2019 में सांसदी का चुनाव लड़े थे पर हार गए। खुज्जी विधानसभा में कुल मतदाता 191267 हैं, जिसमें पुरुष 95042, महिला मतदाता 96228 हैं। खुज्जी विधानसभा सीट कांग्रेस की गढ़ मानी जाती है। पिछले तीन चुनाव कांग्रेस के प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं। इस वजह से ये कांग्रेस की महत्वपूर्ण सीट है। वर्तमान में इस सीट से कांग्रेस की छन्नी साहू विधायक हैं।

राजनांदगांव जिले में 4 विधानसभा सीटें-
    राजनांदगांव
    डोगरगढ़
    डोगरगांव
    खुज्जी

राजनांदगांव की वीआईपी सीट पर इन प्रत्याशियों में कड़ा मुकाबला
बीजेपी प्रत्याशी रमन सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन

कवर्धा विधानसभा का सियासी समीकरण
यहां से वर्तमान विधायक मोहम्मद अकबर और भाजपा से विजय शर्मा तो आप से सहसपुर लोहारा राजपरिवार के सदस्य राजा खड़गराज सिंह चुनाव मैदान में हैं। कवर्धा में कांग्रेस की ओर से बीते 5 साल के कामकाज, किसान, कृषि व छत्तीसगढ़िया पर वोट मांग रही है। वहीं भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर वोट मांग रही है। कवर्धा शहर में वर्ष 2021 में हुए दंगा के बाद यहां भाजपा ने हिंदुत्व का मुद्दा को जोर शोर से उठाया। भगवा झंडा विवाद के कारण अक्टूबर 2021 में करीब 18 दिन कवर्धा शहर में धारा 144 लागू किया गया था। इस दंगे में सबसे बड़ा नाम विजय शर्मा का निकलकर सामने आया। भाजपा ने विजय शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है। भाजपा पूरी तरह से हिंदुत्व के मुद्दे पर ही फोकस कर रही है। यहीं कारण है कि कवर्धा में असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की भी सभा हो चुकी है। आप कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकाल में हुए कमियों को गिना रही है। पार्टी के प्रत्यार्शी राजा खड़गराज सिंह आदिवासी समाज से आते हैं। इसके चलते भाजपा और कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है। कवर्धा विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर लोग कृषि कार्य करते हैं। क्षेत्र में धान और गन्ना की फसल ली जाती है। यही कारण है जिले में दो शक्कर कारखाना स्थापित है। एक कवर्धा के राम्हेपुर गांव में और दूसरा पंडरिया के बिसेसरा में। किसान इसके अलावा भी सब्जी के साथ ही दूसरी सीजनल फसल भी लगाते हैं। यहां से सब्जी, गुड़, फल और दूसरी फसलें देश के कोने कोने तक जाती हैं। यहां के किसानों से ही जिले में व्यापार चलता है विधानसभा में कुल 2.98 लाख वोटर हैं।

कवर्धा विधानसभा फैक्ट फाइल
    मतदान केन्द्र                      – 410
    कुल मतदाता की संख्या      – 331407
    पुरुष मतदाता                     – 164687
    महिला मतदात                     -166717
    थर्ड जेंडर                             – 03
    दिव्यांग मतदाता                   – 2441
    नए मतदाता (18 से 19 वर्ष)    – 15802
    सीनियर सिटीजन (80 प्लस)    – 2353

वर्ष 2018 कवर्धा विधानसभा के परिणाम –  
    प्रत्याशी का नाम      पार्टी           वोट मिले
    मोहम्मद अकबर        कांग्रेस         136320
    अशोक साहू             भाजपा          77036
    रामखिलावन डहरिया  निर्दलीय       6604
    अगमदास अनंत         जोगी कांग्रेस  6250

जातिगत समीकरण
जातिगत समीकरण की बात करें तो आदिवासी समाज (अनुसूचित जनजाति) के 50 हजार, साहू समाज (पिछड़ा वर्ग) के 42 हजार, कुर्मी समाज (पिछड़ा वर्ग) के 38 हजार, अनुसूचित जाति वर्ग के 32 हजार और पटेल समाज (पिछड़ा वर्ग) के 17 हजार मतदाता हैं। यही चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते हैं। राजनीति दल भी इन्हीं समाज को साधने में लगी रहती है। कवर्धा विधानसभा में साहू समाज की संख्या अधिक है, जो कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में बंटे हुए हैं। यही कारण है भाजपा यहां जातिगत समीकरण के अनुसार साहू समाज को ही विधायक का टिकट देते आई है। 2003 में सियाराम साहू और 2008 मे अशोक साहू को टिकट दिया गया। 2014 में फिर रिपीट कर अशोक साहू को टिकट दिया गया, लेकिन वे हार गए। साल 2008 से कांग्रेस के मोहम्मद अकबर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि 2013 में मोहम्मद ने भाजपा के अशोक साहू से लगभग 10 हजार वोट से हार थे।
कवर्धा के मु्द्दे और समस्याएं
पिछले कुछ साल से कवर्धा  में सांप्रदायिकता, धर्मांतरण, तुष्टिकरण पर जमकर राजनीति हो रही है। क्षेत्र में अन्य दूसरी समस्याएं भी हैं। जिला मुख्यालय की सड़क चौड़ी न होने से जाम की समस्या बनी हुई है। अंतरराज्यीय बस स्टैंड का काम अधूरा है तो वहीं रोजगार के साधन नहीं हैं। सुतियापाट जलाशय निस्तारिकरण, रेल लाइन, लोहारा ब्लॉक में शक्कर कारखाना खोलने से साथ ही उद्योग की मांग क्षेत्र के लोगों की ओर से लगातार की जा रही है, ताकि स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल सके।
पंडरिया विधानसभा का सियासी समीकरण
इस सीट पर  त्रिकोणीय संघर्ष दिखाई दे रहा है। कुर्मी बहुल्य क्षेत्र पंडरिया में इस बार भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला है। कांग्रेस की ओर से कुर्मी समाज के नीलकंठ (नीलू) चन्द्रवंशी और भाजपा से भावना बोहरा और जोगी कांग्रेस से रवि चन्द्रवंशी मैदान में हैं। भाजपा की ओर से सरकार के 5 वर्ष औक यहां के पूर्व कांग्रेस विधायक ममता चन्द्राकर की निष्क्रियता को भूनाने में लगी हुई है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलकंठ(की ओर से ते 5 साल के कामकाज, किसान, कृषि और  छत्तीसगढ़िया पर वोट मांग रहे हैं। वहीं जोगी कांग्रेस से रवि चन्द्रवंशी भी एक्टिव हैं, ये कुर्मी समाज से आते हैं। वहीं बसपा भी एसटी-एसी वोटरों को लुभा रही है। बता दे कि वर्ष 2018 के चुनाव में जोगी कांग्रेस व बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। तब यहां से बसपा चुनाव लड़ी थी। तब के चुनाव में बसपा के प्रत्याशी चैतराम राज 33 हजार 547 वोट के साथ तीसरे स्थान पर थे। वर्तमान के चुनाव में चैतराम राज फिर से चुनाव लड़ रहे हैं।

पंडरिया  विधानसभा के वोटर्स की संख्या –
मतदान केन्द्र                          – 393
कुल मतदाता की संख्या            – 316142
  पुरुष मतदाता                       – 157649    
महिला मतदाता                      – 158493
   दिव्यांग मतदाता                       – 3102

नए मतदाता (18 से 19 वर्ष)    – 14588
सीनियर सिटीजन (80 प्लस)    – 3223  

वर्ष 2018 पंडरिया विधानसभा के परिणाम –  
    प्रत्याशी का नाम         पार्टी        वोट मिले
    ममता चन्द्राकर           कांग्रेस         100907  
    मोतीराम चन्द्रवंशी       भाजपा        64420  
    चैतराम राज               बीएसपी       33547
    नोटा                         नोटा            5234

कवर्धा की वीआईपी सीट पर इन प्रत्याशियों में कड़ा मुकाबला
– कवर्धा से बीजेपी प्रत्याशी विजय शर्मा के सामने कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद अकबर

कवर्धा जिले की 2 विधानसभा सीटें-
0- कवर्धा
0- पंडरिया
मोहला-मानपुर जिले का सियासी गणित-
मोहला-मानपुर जिला भूपेश सरकार में राजनांदगांव जिले से काटकर बनाया गया है। मोहला-मानपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी संजीव शाह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रशाह मंडावी चुनाव लड़ रहे हैं। वो 2018 में विधायक बने। फिलहाल संसदीव सचिव हैं। मोहला-मानपुर विधानसभा में कुल मतदाता 167818 हैं, जिसमें पुरुष 82757, महिला मतदाता 85059 और टांसजेंडर 2 हैं। नवगठित मोहला मानपुर जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता है।
खैरागढ़ जिले का सियासी गणित-
खैरागढ़ जिला भूपेश सरकार में राजनांदगांव जिले से काटकर बनाया गया है। खैरागढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी विक्रांत सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा चुनाव लड़ रही हैं। विक्रांत नए चेहरे हैं और पहली बार चुनाव मैदान में हैं। वहीं यशोदा वर्मा जिला पंचायत सदस्य रही हैं। वह खैरागढ़ से  विधायक बनी। खैरागढ़ विधानसभा में कुल मतदाता 219558 हैं, जिसमें पुरुष 110158, महिला मतदाता 109400 हैं।

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