स्वामी स्वरूपानंद को भू समाधि, अंतिम दर्शन को पहुंचे शिवराज, कमलनाथ
नरसिंहपुर
नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव तहसील स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में ब्रह्मलीन द्वीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अंतिम दर्शन करने के लिए देश-प्रदेश के विभिन्न स्थानों से श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है. आज को शाम 4 बजे ब्रह्मलीन शंकराचार्य को भू समाधि संस्कार कर नमन किया जाएगा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर पहुंचे. पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी यहां पहुंचकर जगतगुरु स्वरूपानंद के चरणों में नमन कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे. उधर भाजपा के इंदौर के कद्दावर नेता उमेश शर्मा के निधन पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा इंदौर पहुंचकर उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए.
कैसे होता है हिंदू धर्म के साधू और संतों का अंतिम संस्कार. किस तरीके से उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी. आइए जानते हैं ये कैसे होता है. संत परम्परा में अंतिम संस्कार उनके सम्प्रदाय के अनुसार ही तय होता है. वैष्णव संतों को ज्यादातर अग्नि संस्कार दिया जाता है, लेकिन सन्यासी परंपरा के संतों के लिए तीन संस्कार बताए गए हैं.
कौन से हैं तीन तरीके
इन तीन अंतिम संस्कारों में वैदिक तरीके से दाह संस्कार तो है ही इसके अलावा जल समाधि और भू-समाधि भी है. कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी देह को जंगलों में छोड़ दिया जाता है.
अब क्यों नहीं दी जाती जल समाधि
वृंदावन के प्रमुख संत देवरहा बाबा को जल समाधि दी गयी थी जबकि दूसरे अन्य कई संतों का अंतिम संस्कार भी इसी तरह हुआ. बाबा जयगुरुदेव को अंतिम विदाई दाह संस्कार के जरिए दी गई थी. हालांकि इस पर विवाद भी हो गया था. तब जयगुरुदेव आश्रम के प्रमुख अनुयायियों ने कहा था कि बाबा की इच्छा के अनुरूप ही वैदिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया जा रहा है. रामायण, महाभारत और अन्य हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भारतीय संतों को जल समाधि देने का ही जिक्र आता है.
अब दी जाती है भू-समाधि
संन्यासी परंपरा में जरूर जल या भू-समाधि देने की परिपाटी रही है, लेकिन वैष्णव मत में पहले भी कई बड़े संतों का अग्नि संस्कार किया गया है.वैसे आमतौर पर साधुओं को पहले जल समाधि दी जाती थी, लेकिन नदियों का जल प्रदूषित होने के चलते अब आमतौर पर उन्हें जमीन पर समाधि दी जाती है.
भू समाधि में किस मुद्रा में बिठाया जाता है
भू समाधि में साधू को समाधि वाली स्थिति में बिठाकर ही उन्हें विदा दी जाती है. जिस मुद्रा में उन्हें बिठाया जाता है, उसे सिद्ध योग की मुद्रा कहा जाता है. आमतौर पर साधुओं को इसी मुद्रा में समाधि देते हैं.
साधुओं और संतों को ध्यान और समाधि की स्थिति में बिठाकर भू समाधि देने की वजह ये भी होती है कि साधु संतों का शरीर ध्यान आदि से खास ऊर्जा से युक्त रहता है. इसीलिए भू समाधि देने पर उनके शरीर को प्राकृतिक तौर पर प्रकृति में मिलने दिया जाता है.
2 सितंबर को मनाया था अपना 99वां जन्मदिन
झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की निधन की सूचना के बाद आश्रम में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. शंकराचार्य ने 9 दिन पहले 2 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. निधन की खबर से उनके शोकाकुल है. आश्रम में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे. भारी पुलिस बल भी तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.
मध्य प्रदेश में जन्म, काशी में ली थी वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.
दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं. शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं.