भारत ने चावल निर्यात पर लगाई रोक, दुनियाभर में मची अफरा-तफरी
नई दिल्ली
भारत ने पिछले हफ्ते चावल के निर्यात पर जो पाबंदियां लगाई थीं, उनके कारण एशिया में व्यापार लगभग ठप्प पड़ गया है क्योंकि भारतीय व्यापारी अब नए समझौतों पर दस्तखत नहीं कर रहे हैं. नतीजतन खरीददार वियतनाम, थाईलैंड और म्यांमार जैसे विकल्प खोज रहे हैं. लेकिन इन देशों के व्यापारियों ने मौके को भुनाने के कारण दाम बढ़ा दिए हैं.
दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत ने पिछले हफ्ते ही टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगाने का ऐलान किया था. साथ ही कई अन्य किस्मों पर निर्यात कर 20 प्रतिशत कर लगा दिया गया. औसत से कम मॉनसून बारिश के कारण स्थानीय बाजारों में चावल की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने के लिए यह फैसला किया गया है.
भारत दुनिया के 150 से ज्यादा देशों को चावल का निर्यात करता है और उसकी तरफ से निर्यात में आने वाली जरा सी भी कमी उन देशों में कीमतों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है. पहले से खाने के सामान की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि झेल रही दुनिया के लिए यह एक बड़ी समस्या हो सकती है. यूरोप और अमेरिका के कई इलाके ऐतिहासिक सूखे से जूझ रहे हैं और यूक्रेन युद्ध का असर भी विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ाए हुए है.
गेहूं के बाद चावल की बारी
यूक्रेन युद्ध के बाद से ही अनाजों की मांग और आपूर्ति में असंतुलन बना हुआ है. पहले गेहूं और चीनी को लेकर समस्या थी और दोनों चीजों की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई थी. हाल ही में भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोग लगा दी थी और चीनी के निर्यात को भी नियंत्रित कर दिया था.
अब यही स्थिति चावल के साथ हो रही है. भारत के फैसले के बाद से एशिया में चावल के दाम पांच प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. जानकारों का कहना है कि अभी कीमतों में और ज्यादा वृद्धि होगी.
भारत के सबसे बड़े चावल निर्यातक सत्यम बालाजी के निदेशक हिमांशु अग्रवाल कहते हैं, "पूरे एशिया में चावल का व्यापार ठप्प पड़ गया है. व्यापारी जल्दबाजी में कोई वादा नहीं करना चाहते. पूरी दुनिया के कुल चावल निर्यात का 40 फीसदी भारत से होता है. इसलिए कोई भी इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं है कि आने वाले समय में दाम कितने बढ़ेंगे."
चावल दुनिया के तीन अरब लोगों का मुख्य भोजन है. 2007 में भी भारत ने चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. तब इसके दाम एक हजार डॉलर प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे.
2021 में भारत का चावल निर्यात रिकॉर्ड 2.15 करोड़ टन पर पहुंच गया था जो दुनिया के बाकी चार सबसे बड़े निर्यातकों थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका के कुल निर्यात से भी ज्यादा है. भारत को सबसे बड़ा फायदा उसकी कीमत से ही होता है क्योंकि वह सबसे सस्ता सप्लायर है.
बंदरगाहों पर लदाई बंद
भारत सरकार के फैसले के बाद देश के प्रमुख बंदरगाहों पर जहाजों में चावल की भराई का काम बंद हो गया है और करीब दस लाख टन चावल वहां पड़ा हुआ है क्योंकि खरीददार सरकार द्वारा लगाई गए नए 20 प्रतिशत कर को देने से इनकार कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस चावल के दाम पर समझौते बहुत पहले हो चुके हैं और सरकार ने जो नया कर लगाया है वह पहले से तय नहीं था.
अग्रवाल कहते हैं कि बढ़े हुए कर के कारण आने वाले महीनों में भारत का निर्यात 25 फीसदी तक गिर सकता है. वह कहते हैं कि सरकार को कम से कम उन समझौतों के लिए राहत देनी चाहिए जो आज से पहले हो चुके हैं और बंदरगाहों पर चावल लादा जा रहा है.
अग्रवाल ने कहा, "खरीददार पहले से तय कीमत पर 20 प्रतिशत ज्यादा नहीं दे सकते और विक्रेता भी 20 प्रतिशत कर वहन नहीं कर सकते. सरकार को पहले से हो चुके समझौतों को राहत देनी चाहिए.”
वैसे, कुछ खरीदार बढ़ा हुआ कर देने को तैयार भी हो गए हैं. चावल निर्यातक ओलाम के उपाध्यक्ष नितिन गुप्ता कहते हैं कि अभी शिपिंग कंपनियां पुराने माल की लदाई में उलझी हैं इसलिए नए समझौतों नहीं हो पा रहे हैं.
दूसरे देशों का फायदा
इसका फायदा भारत के प्रतिद्वन्द्वी देश थाईलैंड, वियतनाम और म्यांमार के व्यापारी उठा रहे हैं क्योंकि चावल की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए खरीददार इन देशों की ओर रुख कर रहे हैं. लेकिन इन देशों के व्यापारियों ने टूटे चावल के दाम पांच फीसदी तक बढ़ा दिए हैं. डीलरों का कहना है कि पिछले चार दिन में, यानी भारत के निर्यात पर रोक के फैसले के बाद से कीमतों में 20 डॉलर यानी लगभग डेढ़ हजार रुपये प्रति टन की वृद्धि हो चुकी है.