सियासी किस्सा: जब गुजरात के पूर्व CM के बेटे को हराने उतर गई थी साधुओं की फौज, खूब रोई थीं पत्नी
नई दिल्ली
बात साल 2002 की है। दिसंबर का महीना था। गुजरात विधानसभा का चुनाव हो चुका था और उस दिन वोटों की गिनती चल रही थी। बीजेपी ने फिर से बड़ी जीत हासिल की थी और कांग्रेस 39.28 फीसदी वोट शेयर के साथ 51 सीटों पर सिमट चुकी थी। अहमदाबाद के पालदी स्थित कांग्रेस मुख्यालय- राजीव भवन के पास सन्नाटा छाया हुआ था। न तो कार्यकर्ता और न ही समर्थकों में कोई उल्लास, सभी उदास से दिख रहे थे। पार्टी कार्यालय में एक महिला रोए जा रही थी। वह उर्मिला पटेल थीं। राज्य के दिवंगत मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल की पत्नी। उनके बेटे सिद्धार्थ पटेल दभोई विधानसभा सीट से बतौर कांग्रेसी उम्मीदवार चुनाव हार चुके थे। उन्हें बीजेपी के चंद्रकांत मोतीभाई पटेल ने चुनाव हरा दिया था। गुजरात में वह दौर प्रचंड हिन्दुत्व के लहर का दौर था।
ढाई सौ साधुओं ने संभाला था मोर्चा:
उर्मिला पटेल राजीव भवन में बार-बार अपने नेताओं से कह रही थीं कि उनके बेटे के खिलाफ साधुओं ने मोर्चा खोल रखा था। उन्होंने तब कांग्रेस नेताओं पर सवालिया लहजे में कहा था, "250 से अधिक साधुओं ने, जिनमें ज्यादातर सांखेड़ा-नगर स्थित स्वामीनारायण से संबंधित थे, ने मेरे बेटे के खिलाफ अभियान चलाया। आप लोगों ने इस तरह के डोर-टू-डोर अभियान का मुकाबला कैसे किया?" तब गुजरात की घरेलू महिलाओं को साधने के लिए साधुओं का झुंड भाजपा की महिला कार्यकर्ताओं के साथ डोर-टू-डोर कैम्पेन कर रहा था!
प्रचंड हिन्दुत्व की लहर:
उस वक्त कांग्रेस महासचिव और गुजरात के प्रभारी कमलनाथ के डिप्टी सुरेश पचौरी राज्य में महीने भर से कैम्प कर रहे थे। वो तमाम तरह के प्रचार अभियान बना रहे थे और उसे लागू कर रहे थे लेकिन हिन्दुत्व की लहर में वो टिक नहीं पाए थे। पचौरी इस बात के लिए परेशान थे और दिल्ली स्थित नेताओं से फोन पर पूछताछ कर रहे थे कि हार के लिए क्या कारण बताया जाना चाहिए।
कांग्रेस सांसद टीवी देखने में रहे मशगूल:
दरअसल, गुजरात दंगों के बाद वहां विकास के मुद्दों पर साम्प्रदायिक भावनाएं हावी हो चुकी थीं। उस वक्त शंकर सिंह वाघेला प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनके विश्वासपात्र और सांसद मधुसूदन मिस्त्री चुनावी परिणाम की चिंताओं से इतर तब न्यूज चैनल देखने में मशगूल थे। 182 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा में तब बीजेपी ने करीब 50 फीसदी वोट बैंक पर कब्जा करते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था और अब तक का सर्वाधिक कुल 127 सीटें जीती थीं। 1998 में बीजेपी को 117 सीटें मिली थीं।