September 27, 2024

Nepal Election: नेपाल में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू, भारत किसकी जीत की दुआ करेगा?

0

नेपाल
नेपाल में अगली सरकार चुनने के लिए आज देश के करीब एक करोड़ 80 लाख मतदाता वोट डालेंगे और मतदान की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कई पार्टियां होने की वजह से नेपाल की राजनीति लगातार अस्थिर रही है, लिहाजा इस चुनाव पर भी पूरी दुनिया की नजर है, कि क्या नेपाल एक स्थिर सरकार का निर्माण कर पाएगा। क्योंकि, राजशाही के खात्मे के बाद से पिछले 14 सालों में नेपाल में अब तक 10 बार सरकारें बदल चुकी हैं, लिहाजा नेपाल के लोगों के सामने एक स्थिर और मजबूत सरकार चुनने की चुनौती होगी। हालांकि, पिछली बार जनता ने कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन को दो तिहाई बहुमत दिया था, लेकिन सरकार बनाने के बाद कम्युनिस्ट पार्टियों का गठबंधन टूट गया और सरकार गिर गई। ऐसे में आईये नेपाल के मतदान प्रक्रिया को समझते हैं।
 
नेपाल में आज हो रहा मतदान
नेपाल में आज चल मतदान में 275 संसदीय सीट और 7 प्रांतों की 550 विधानसभा सीटों पर एक साथ वोट डाले जा रहे हैं। नेपाल में केन्द्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ होते हैं। नेपाली संविधान के मुताबिक, देश की 275 संसदीय सीटों में से 165 सीटों पर 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' (FPTP) सिस्टम के मुताबिक वोट डाले जाते हैं, जबकि बाकी बचे 110 सीटों को प्रोपर्सनल रिप्रजेंटेशन (PR) यानि, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए भरे जाएंगे। वहीं, सात प्रांतीय विधानसभाओं की कुल 330 सीटों पर सीधे वोटिंग के जरिए फैसला होगा, जबकि बाकी बचे 220 सीटों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व से भरा जाएगा।
 
नेपाल में वोटिंग की प्रक्रिया समझिए
नेपाल चुनाव में प्रत्येक मतदाता चार मतपत्रों पर मुहर लगाता है और उन्हें अलग-अलग बक्सों में डालता है। संघीय संसद और प्रांतीय विधायिका के लिए प्रत्येक एफपीटीपी उम्मीदवारों के लिए एक-एक वोट डाला जाता है और केंद्र और प्रांतों में अपनी मनपसंद पार्टियों के लिए एक-एक वोट डाला जाता है। प्रत्येक पार्टी द्वारा मतदान की संख्या पीआर प्रणाली के तहत केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में प्राप्त होने वाली सीटों की संख्या निर्धारित करती है। नेपाल चुनाव कुछ कुछ इजरायल में होने वाले चुनाव की तरह है, जहां एक पार्टी को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने और पीआर के तहत सुरक्षित सीट हासिल करने के लिए, उसे संघीय संसद में एफपीटीपी प्रणाली के तहत कम से कम एक सीट और कम से कम 3 प्रतिशत वोट हासिल करना ही होगा। नेपाल चुनाव आयोग ने चुनाव में होने वाली हिंसा और धांधली की आशंकाओं के बावजूद एक ही दिन में चुनाव कराने का फैसला किया है, क्योंकि "यह अधिक व्यावहारिक और पैसे बचाने वाला होगा"।
 
कितनी पार्टियों के बीच चुनाव?
नेपाल में होने वाला चुनाव मुख्य तौर पर दो गठबंधनों के बीच हो रहा है। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस (NC) के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन है, जिसमें पुष्प कमल दहल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी सेंटर (CPN-MC) और माधव कुमार नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड सोशलिस्ट (CPN-) शामिल हैं। वहीं, विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनाइटेड मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) कर रही है, जो चुनाव के बाद पद पर लौटने की उम्मीद कर रहे हैं। यूएमएल ने आधा दर्जन सीटों पर राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के साथ गठबंधन किया है। वहीं, राजशाहीवादी और हिंदू राष्ट्रवादी आरपीपी ( एफपीटीपी प्रणाली के तहत) 150 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसका चुनावी वादा देश को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाने की है। इसके साथ ही तराई के छोटे दलों ने दो प्रमुख गठबंधनों के साथ गठबंधन किया है, जो पहले से अधिक स्वायत्तता की तलाश करने की तुलना में सत्ता में किसी भी तरह से हिस्सेदारी चाहते हैं। वहीं, इस बार नेपाल चुनाव में करीब 1,200 उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
 
देउबा बनाम केपी शर्मा ओली, कौन मजबूत?
चुनाव में मुख्य मुकाबला केपी शर्मा ओली और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा के बीच है। ओली को गठबंधन के अंदर से उनका कोई विरोध नहीं दिखाई दे रहा है, लेकिन शेर बहादुर देउबा के लिए राहें काफी मुश्किल दिख रही हैं। पार्टी और गठबंधन के अंदर से ही उनके खिलाफ आवाजें उठती रही हैं, जिसमें उनकी खुद की पार्टी के महासचिव गगन थापा शामिल हैं, जिन्होंने गठबंधन के सत्ता में लौटने की स्थिति में प्रधानमंत्री पद के लिए अभी से दावा पेश कर दिया है। 76 साल के देउबा पांच बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, जबकि ओली और प्रचंड दो-दो बार इस पद पर रह चुके हैं। ओली और प्रचंड की पार्टियों को हर बार असाधारण बहुमत मिलता है, लेकिन सरकार बनाने के बाद या तो पार्टी टूट जाती है, या फिर गठबंधन बिखड़ जाता है।
 
किसकी जीत चाहेगा भारत?
भारत, जो 2005 तक नेपाल की आंतरिक राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाता था, उसने माओवादियों के साथ सहयोग करने के बाद अपना दबदबा खो दिया, जिसे उसने आतंकवादी घोषित कर रखा था। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *