November 24, 2024

बिहार की सियासत में कितने अहम पसमांदा मुस्लिम, जानें क्या है बीजेपी का प्लान

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 पटना 

बिहार में बिगड़े हुए सियासी और जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी आज संविधान दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित कर रही है। जिसमें पसमांदा मुस्लिमों, दलितों, ईबीसी के लोगों को जोड़कर आगामी चुनाव के लिए मजबूत रणनीति बनाने पर काम कर रही है। बिहार में जेडीयू से अलग होने के बाद से बीजेपी का सियासी संतुलन बिगड़ गया था। अब बीजेपी उसी झटके से उबरने की कोशिश में लगी हुई है। बीजेपी की नजर पसमंदा मुस्लिमों पर है, जिनकी आबादी मुस्लिमों में लगभग अस्सी प्रतिशत के आसपास है। ऐसे में ये समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है। अभी तक इस समुदाय को बिहार में महागठबंधन का वोट बैंक माना जाता है।

बीजेपी का मानना है कि पिछले कई साल से पसमांदा मुस्लिमों को विकास से महरूम रखा गया है। जबकि इनके वोट बैंक को अपने पाले में कर कभी कांग्रेस तो कभी राजद और जदयू ने बिहार में सरकार बनाई। लेकिन जब इनका हक़ देने की बारी आती है तो राजनीतिक दल पलटी मार लेते हैं। किसी भी सरकार ने अभी तक पसमांदा मुस्लिमों के विकास के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई, जिसकी वजह से आज भी ये तबका विकास से कोसों दूर है।

बीजेपी को कभी नहीं मिला समर्थन
बीजेपी का मानना है कि अभी तक इनका समर्थन उसे हासिल नहीं हुआ है, लेकिन बावजूद इसके, बीजेपी इन्हें अपने नज़दीक लाना चाहते हैं. इन्हें विकास की मुख्य धारा में शामिल करना चाहते हैं.  इसीलिए संविधान दिवस के दिन एक बड़ा आयोजन कर इनसे बात करने का बड़ा प्रयास है, ताकि उनकी समस्या जान सके और उसे दूर कर सकें।बीजेपी नेता संजय पासवान का कहना है कि पसमांदा मुस्लिम की बड़ी आबादी धर्मांतरण कर मुस्लिम बने हैं, जो पहले हिंदू थे। इस वजह से भी हमें उम्मीद है कि वो हमारी बातों को ठीक-तरीक़े से समझ पाएंगे। जिसके चलते इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। 

महागठबंधन ने बीजेपी को घेरा 
वहीं बीजेपी के इस कार्यक्रम पर महागठबंधन ने राजनीति करने का आरोप मढ़ा है। राजद का कहना है कि बीजेपी की फ़ितरत से सभी वाक़िफ़ है, जिनके दिल में मुस्लिमों के लिए कितनी मोहब्बत है। ये सभी जानते हैं। चुनाव करीब है इसीलिए बीजेपी का पसमांदा प्रेम जाग उठा है। इस तरह के आयोजन से बीजेपी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है।

कौन हैं पसमांदा मस्लिम ?
पसमांदा एक फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबाए और सताए हुए लोग। भारत में पसमांदा आंदोलन 100 साल पुराना है, भारत में 90 के दशक में फिर पसमांदा मुसलमानों के हक में दो बड़े संगठन खड़े हुए।  ये थे ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा,जिसके नेता एजाज अली थे।  इसके अलावा पटना के अली अनवर ने ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महज नाम का संगठन तैयार किया है।  ये दोनों संगठन देशभर में पसमांदा मुस्लिमों के तमाम छोटे संगठनों की अगुआई करते हैं। पसमांदा मुस्लिमों के तमाम छोटे संगठन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ज्यादा मिल जाएंगे। एक अनुमान के मुताबिक बिहार में कुल मुस्लिम जनसंख्या में से करीब 80 प्रतिशत मुसलमान पसमांदा समुदाय से आते हैं।

पसमांदा समाज के हक़ के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ने वाले ऑल इंडिया पसमंदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद अली अनवर का कहना है कि इस समाज को उसका हक नहीं मिल पाया है।और सिर्फ़ इसे वोट बैंक समझा गया, लेकिन अब पसमांदा वोट बैंक बनने को तैयार नहीं है। अली अनवर ने कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिख था और पसमांदा मुस्लिमों के विकास और हक के लिए मांग की थी। 
 

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