आतंकियों की इंटरनेट व्यूह रचना को तोड़ने में जुटी सुरक्षा एजेंसियां, तकनीक से दी जाएगी मात
नई दिल्ली
कट्टरपंथ फैलाने के लिए आतंकी समूहों की ओर से डार्कनेट और अन्य साइबर अपराध के तरीकों पर लगाम की कोशिश सुरक्षा एजेंसियां कर रही हैं। आतंकियों की इंटरनेट व्यूह रचना को तोड़ने के लिए अलग-अलग तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अभी तक कोई कारगर टूल नहीं मिला है, जिससे इंटरनेट से कट्टरपंथ, आतंक और अपराध के नए-नए तरीकों पर लगाम कसी जा सके।
गौरतलब है कि गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि आतंकवादी कट्टरपंथी सामग्री फैलाने और अपनी पहचान छिपाने के लिए डार्कनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी संपत्ति के उपयोग में वृद्धि हुई है। इन गतिविधियों के पैटर्न को समझने और उनके समाधान के लिए सुरक्षा एजेंसियों को पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है।
अलग-अलग प्लेटफार्म आतंकवादियों के बने टूल
सूत्रों का कहना है कि इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म आतंकवादियों के टूल बन गए हैं। भारत सहित कई देशों की ओर से इन गतिविधियों को रोकने के लिए निरंतर प्रयास किए गए हैं, लेकिन आतंकी समूह सुरक्षा एजेंसियों को कई बार चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं। एक अधिकारी ने कहा, 'आतंकवादी उद्देश्यों के लिए इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म सहित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग चिंता का विषय है।'
इंटरनेट मीडिया का आतंकी संगठनों की तरफ से उपयोग बढ़ गया है। साथ ही क्राउडफंडिंग जैसी नई व्यवस्था से आतंकी वित्तीय साधन भी जुटा रहे हैं। तकनीक और आतंकवाद के खतरनाक गठजोड़ से निपटने के लिए कई एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं। इंटरनेट मीडिया पर निगरानी भी चल रही हैं, लेकिन चुनौती कम नहीं हुई है।
धरपकड़ के लिए वैश्विक गठजोड़ की जरूरत
एजेंसियों का कहना है कि कौन किस सर्वर के जरिए कट्टरपंथ और आतंक से जुड़ी गतिविधि कर रहा है। इसकी धरपकड़ के लिए वैश्विक गठजोड़ की जरूरत है। क्योंकि कई मामलों में विदेशी धरती पर बैठकर भारत में आतंक और कट्टरपंथ की साजिश रची जाती है। बाहर के सर्वर का इस्तेमाल होने से धरपकड़ आसान नहीं होती। अधिकारियों का कहना है कि एजेंसियां नए सॉफ्टवेयर, तकनीकी और इंटरनेट इनोवेशन पर भी जोर दे रही हैं।