दो सालों से गोरखपुर एम्स में धूल फांक रही 17 करोड़ की मशीनें, बाहर से जांच कराने को मजबूर हैं मरीज
गोरखपुर
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में करीब 17 करोड़ की लागत से लगी आधुनिक मशीनें धूल फांक रही हैं। ये मशीनें पिछले दो सालों से बंद हैं। यहां तक कि मशीनों की ट्रॉली जाम हो गई है। जिसके कारण मरीजों को मजबूरन प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। दरअसल इस मशीनों को चलाने के लिए रेडियोलॉजिस्ट का इंतजार है।
पूर्वांचल यूपी में इलाज के लिए एम्स बेहद महत्वपूर्ण है। यहां रोजाना तीन हजार से अधिक मरीज ओपीडी में इलाज कराने आते हैं। वहीं 300 बेड का आईपीडी शुरू हो चुका है। यहां बिहार और नेपाल तक के मरीज भी इलाज कराने पहुंचते हैं। लेकिन यहां बंद पड़ी रेडियोलॉजी की जांचों के लिए मरीजों को बाहर जाना पड़ता है। एम्स में दो साल से सीटी स्कैन और एमआरआई की मशीनें लगी हुई हैं।
एमआरआई की लागत करीब 11 करोड़ रुपये है। वहीं, सीटी स्कैन करीब पांच करोड़ का है। अल्ट्रासाउंड और एक्सरे की मशीन एक करोड़ रुपये का है। अब तक गोरखपुर एम्स में एमआरआई और सीटी स्कैन एक भी मरीज का नहीं हुआ है। मशीन ट्रायल के बाद से दिसंबर 2020 से ही धूल फांक रही है।
ओपीडी में रोजाना 300 से अधिक मरीजों को रेडियोलॉजी की जांच कराने को कहा जाता है। ऐसे में एम्स में इलाज कराने वाले मरीजों को जेब ढीली करनी पड़ती है। इसके अलावा मरीजों दलालों के चक्कर में पड़कर ठगी का भी शिकार बन रहे हैं।
महंगी मशीनें लेकिन नहीं मिल रहे रेडियोलॉजिस्ट
गोरखपुर एम्स में साल 2020 में एक रेडियोलॉजिस्ट ने ज्वाइन किया लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसने इस्तीफा दे दिया। नवंबर 2020 में दो रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति हुई लेकिन दोनों ने एम्स में ज्वाइन करने से इनकार कर दिया। इसलिए मशीनों से अभी तक जांच शुरू नहीं हो पाई है। दूसरी तरफ एक्सरे टेक्नीशियन के भरोसे चल रहा है। रिपोर्ट भी टेक्नीशियन ही जारी कर रहा है। नियम के अनुसार रेडियोलॉजिस्ट के बिना न तो अल्ट्रासाउंड हो सकता है और ना ही एक्सरे।