गहलोत-पायलट की खींचतान राजस्थान में कांग्रेस को दे सकती है टेंशन, MP-छत्तीसगढ़ में कैसे हैं आसार
राजस्थान
इस साल राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता पर काबिज है। आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए इन दो राज्यों में अपनी सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती होगी तो मध्य प्रदेश में पार्टी सत्ता पाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस का कहना है कि उसकी 'भारत जोड़ो यात्रा' एक 'बूस्टर डोज' की तरह है जिससे आगामी विधानसभा चुनावों में उसे जबर्दस्त लाभ होगा। कांग्रेस जो भी दावे करे लेकिन सवाल बरकरार है कि क्या 'भारत जोड़ो यात्रा' राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे चुनावी राज्यों में उसके लिए मददगार होगी। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजे ही 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस के दबदबे की तस्वीर साफ करेंगे।
बनाए रखना होगा जोश
मालूम हो कि भारत जोड़ो यात्रा चार चुनावी राज्यों- कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना से होकर गुजरी है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 4,000 किलोमीटर की यात्रा ने निश्चित रूप से इन राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा है लेकिन क्या यह इन संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनाव में रंग दिखा पाएगी। विश्लेषकों की राय है कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या संबंधित प्रदेश इकाइयां कांग्रेस की मौजूदा गति को बनाए रख पाती हैं या नहीं…
बेहद मायने रखेगी पार्टी की एकजुटता
सियासत के जानकार बताते हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में संगठन के स्तर पर पार्टी की एकजुटता भी बेहद मायने रखेगी। खासकर तब जब राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में पार्टी गुटबाजी से प्रभावित रही है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को इस यात्रा से कुछ फायदा हासिल होता दिख रहा है लेकिन राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके कट्टर विरोधी सचिन पायलट खेमे के बीच गुटबाजी जारी है। राहुल गांधी का पैदल मार्च भी इसको सुलझाने में नाकाफी रहा है।
राजस्थान में जारी है टकराव
कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' का राजस्थान चरण जैसे ही 21 दिसंबर को आखिरी चरण में पहुंचा, कांग्रेस ने राहत की सांस ली क्योंकि यात्रा सड़कों पर नारेबाजी के बावजूद राज्य में गहलोत एवं पायलट समर्थकों के बीच बिना किसी टकराव के आगे बढ़ी। लेकिन इसके तुरंत बाद पायलट ने राज्य में कई जनसभाओं की घोषणा की जिसमें लोगों ने उनकी ताकत देखी और यह आलाकमान के लिए एक संदेश की तरह था कि उनकी चिंताओं का अब तक समाधान नहीं हुआ है।
राजस्थान में नहीं थम रही खींचतान
रैलियों में अपने संबोधन में पायलट ने गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को बार-बार पेपर लीक की घटनाओं, पार्टी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर सेवानिवृत्त नौकरशाहों की राजनीतिक नियुक्ति जैसे मुद्दों पर घेरा। वहीं, पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की उनके खेमे की मांग ने फिर से जोर पकड़ लिया और उनके विश्वस्त नेता खुलेआम राज्य में उन्हें मुख्यमंत्री पद दिए जाने की वकालत कर रहे हैं। राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर कांग्रेस राज्य में सत्ता में आती है तो गहलोत-पायलट सवाल को सुलझाने की जरूरत है, नहीं तो यात्रा से मिले फायदे का कोई लाभ नहीं होगा।
पार्टी को कमजोर करेगी गहलोत-पायलट की लड़ाई
राजस्थान के ही एक पार्टी कार्यकर्ता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि यात्रा से पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा मिला है लेकिन पायलट और गहलोत के बीच अब भी मुद्दे अनसुलझे हैं जो निश्चित रूप से अगले चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे। अन्य पार्टी कार्यकर्ता ने कहा कि पार्टी के सभी नेताओं के लिए जरूरी है कि वे एकजुट रहें। गहलोत-पायलट की लड़ाई पार्टी को कमजोर कर सकती है।
एमपी में चुनाव के वक्त ही नजर आएगा असर
विश्लेषकों का कहना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 2023 के चुनाव के लिए यात्रा से लाभ प्राप्त करने की खातिर राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करके इस गति बनाए रखनी होगी। मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एससी त्रिपाठी ने कहा- भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को 2023 के चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिए आगे की कार्रवाई करनी होगी। पार्टी को इसके लिए योजना बनानी चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने कहा कि यात्रा ने मध्य प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया है लेकिन मतदाताओं के बीच इसका असर चुनाव के समय ही दिखाई देगा।