परीक्षण बगैर भेजे जा रहे प्रस्तावों पर विधि विभाग ने जताई आपत्ति
भोपाल
प्रदेश में न्यायालय की अवमानना और सरकार की नीतियों, फैसलों के विरोध में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले मामलों में अधिवक्ताओं के उचित परीक्षण बगैर ही प्रस्ताव विधि विभाग को भेजे जा रहे हैं। विभागीय अधिकारियों द्वारा अधिवक्ताओं की नियुक्ति न होने से बने हालातों के मद्देनजर भेजे जा रहे ऐसे प्रस्तावों पर विधि विभाग ने आपत्ति की है और इसके लिए सभी विभागों को पत्र लिखकर विधि प्रक्रिया का पालन करने को कहा है ताकि न्यायालय में किरकिरी होने से बच सके।
विधि और विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों तथा सचिवों को लिखे पत्र में इस बात पर नाराजगी जताई है। विधि विभाग की ओर से कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में अपने विभाग के पक्ष में तथ्य रखने के लिए कई स्थायी अधिवक्ताओं, विधि अधिकारियों और अन्य अधिवक्ताओं की राय लिए बगैर सीधे प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा रहे हैं। प्रमुख सचिव विधि के समक्ष सीधे आने वाले अत्यधिक प्रस्तावों के चलते कोर्ट में प्रस्तुत किए जाने से पूर्व सभी तथ्यों का परीक्षण बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कोर्ट में पेश किए जाने वाले तथ्यों के लिए तय प्रक्रिया का उल्लंघन भी हो रहा है। इसलिए सभी अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि राज्य के स्थायी अधिवक्ता, राज्य के विधि अधिकारियों और अन्य अधिवक्ताओं की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जाए ताकि उनके परीक्षण के आधार पर विधि विभाग के पास प्रस्ताव पेश किए जा सकें। इसलिए भी सीधे
भेज रहे प्रस्ताव
विभागीय अधिकारियों के अनुसार सरकार ने शासकीय अभिभाषकों की नियुक्ति नहीं की है। ऐसे में जिस विभाग से संबंधित अवमानना या कोर्ट केस दायर होता है, उस विभाग के जिला अधिकारी या अन्य अफसरों को अपने स्तर पर फंड मैनेज कर कोर्ट में प्रकरण का जवाब तैयार कराना पड़ता है। इस फंड का भुगतान सरकार भी नहीं करती है। इसलिए विभागों की ओर से अपने स्तर पर जैसे तैसे प्रस्ताव तैयार कर विधि विभाग को भेजे जाते हैं और इनके परीक्षण में विधि विभाग को अतिरिक्त समय लगता है। ऐसे में केस का जवाब देने में देरी की स्थिति बनती है।