बिहार में नीतीश कुमार को 20 साल तक मिलता रहा जो वोट, भाजपा ने उसमें दी 2 चोट
नई दिल्ली
बिहार की गद्दी पर नीतीश कुमार करीब 18 वर्षों से राज कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने कभी अपने दम पर यहां सरकार नहीं बनाई। उन्हों सदैव गठबंधन के दम पर ही शासन किया है। सबसे अधिक समय तक उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर सरकार चलाई। वहीं, एनडीए से अलग होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का समर्थन स्वीकार किया। इसबार जब नीतीश कुमार ने बिहार में गठबंधन तोड़ा तो केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने साफ कर दिया कि उनके लिए भाजपा के दरवाजे अब सदा के लिए बंद हो चुके हैं। जेडीयू के खिलाफ भगवा पार्टी के तेवर सिर्फ शाह के बयान में ही नहीं दिख रहे हैं, बल्कि रणनीति में भी साफ झलक रही है।
बीजेपी ने चंद दिनों पहले बिहार में अपना नया अध्यक्ष चुना है। बिहार जैसे राज्यों में जाति को काफी ध्यान में रखकर कोई सियासी फैसले लिए जाते हैं। बीजेपी ने कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को बिहार में पार्टी की कमान सौंप दी है। शकुनी चौधरी के बेटे को नेतृत्व सौंपकर बीजेपी ने नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक लव-कुश समीकरण को बिगाड़ने की कोशिश की है।
उपेंद्र के सहारे कुशवाहा वोट पर नजर
भाजपा की तरफ से यह कोई पहला हमला नीतीश कुमार के लव-कुश वोट बैंक पर नहीं किया गया है। बिहार के सियासी गलियारों में इस बात की भी शोर सुनाई देती है कि उपेंद्र कुशवाहा की नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत और नई पार्टी के गठन के पीछे भी बीजेपी की रणनीति है। कहा जा रहा है कि पर्दे के पीछे उन्हें बीजेपी का मजबूत समर्थन हासिल हो रहा है। बतौर प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात भी की थी। कुशवाहा से मिलने वालों में जयसवाल अकेले बीजेपी नेता नहीं हैं।
लव-कुश समीकरण को तोड़ने का क्या होगा लाभ?
बिहार के इस बहुचर्चित लव-कुश समीकरण में कुर्मी और कुशवाहा आते हैं। बिहार में फिलहाल नीतीश कुमार कुर्मी जाति के सबसे बड़े और दिग्गज नेता हैं। उनकी संख्या हालांकि सिर्फ 2.5 प्रतिशत के करीब है। वहीं, इस समीकरण में सबसे बड़ा शेयर कुशवाहा का है, जो कि करीब 5.5 से 6 फीसदी तक है। नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा और बिहार बीजेपी के नए नवेले अध्यक्ष इसी जाति से आते हैं। कुशवाहा वोट बैंक के बड़े आकार को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने नीतीश कुमार को सियासी रूप से कमजोर करने के लिए इस जाति को लुभाने की कोशिश की है।
आरजेडी को तोड़ना नहीं होगा आसान
बीजेपी के रणनीतिकारों को इस बात का आभास हो गया है कि वह आरजेडी के वोट बैंक यानी (मुस्लिम-यादव) समीकरण को चोट नहीं पहुंचा सकते हैं। इसलिए बीजेपी ने अपनी रणनीती अचानक बदल दी और नीतीश कुमार को ही कमजोर करने की योजना पर काम करने लगी है। नीतीश कुमार के वोट बैंक कुर्मी पर भी फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही पकड़ मानी जाती है। यही वजह है कि जेडीयू से बेदखल किए गए आरसीपी सिंह भी अभी तक अपनी जाति में अपनी सियासी जमीन तैयार करने में सफल नहीं हो सके हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे थे। इस चुनाव में जेडीयू-आरजेडी के गठबंधन को तरीबन 42 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की झोली में 30 प्रतिशत वोट गिरे थे। अकेले बीजेपी को 24.4 फीसदी वोट मिला था। उस चुनाव में जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान एनडीए के ही हिस्सा था।
बिहार में बीजेपी का सम्राट प्लान?
बिहार की सियासी फिजा में फिलहाल जो तस्वीर सामने बनकर उभरी है, उसमें बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और मुकेश सहनी को साथ लेकर चलने की योजना बना रही है। भाजपा इनके सहारे उस गैप को भरने की कवायद कर रही है जो 2015 की लड़ाई में नहीं कर सकी थी। बिहार में कुशवाहा वोट करीब 6 प्रतिशत है। वही, रामविलास पासवान को को बिहार की दुसाध जाति का कद्दावर नेता माना जाता है। इनकी संख्या 4 से 4.50 प्रतिशत के करीब है। वहीं, मुकेश सहनी बिहार में मल्लाहों के नेता माने जाते हैं, जिनकी आबादी तीन प्रतिशत के करीब है। हालांकि, यूपी के मल्लाहों की तुलना में ये आर्थिक रूप से सबल होते हैं। इस कारण से ये 4-5 प्रतिशत वोटों पर असरदार साबित होते रहते हैं। इन क्षत्रपों के सहारे बीजेपी बिहार में अपनी संख्या को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
युवा सम्राट के तेवर से नीतीश को मिलेगी चुनौती?
सम्राट चौधरी को अध्यक्ष बनाने के पीछे उनकी जाति के अलावा उनका युवा तेवर का भी बड़ा रोल है। वह कई मौकों पर सदन में और सदन के बाहर नीतीश कुमार को खुली चुनौती देते हुए दिखते हैं। हाल ही में विधान परिषद में नीतीश कुमार उन्हें उनकी सियासी पारी की याद दिला रहे थे। जिसमें आरजेडी का उनका कार्यकाल भी शामिल है। सम्राट चौधरी ने बिना मौंका गंवाए नीतीश कुमार की गठबंधन तोड़ने का इतिसहास उनके सामने रख दिया। बिहार बीजेपी में इस सियासी घटना की खूब तारीफ भी हुई।