वायुसेना के लिए मजबूरी बने हैं मिग-21 विमान, क्यों कहा जाता है ‘उड़ता ताबूत’?
नई दिल्ली
छह दशक पुराने मिग-21 विमानों के हादसों का सिलसिला थम नहीं रहा है। इन्हें 2025 तक वायुसेना के बेड़े से हटाने की योजना पर कार्य चल रहा है। वायुसेना के पास अभी करीब 125 मिग-21 और अपग्रेड मिग-21 बाइसन मौजूद हैं। लड़ाकू विमानों की कमी के चलते पुराने मिग विमानों को हटाने में विलंब हुआ है।
भारत ने 1963 में रूस से 1200 मिग विमानों की खरीद का करार किया था जिनमें से ज्यादातर विमान तकनीक हस्तांतरण के योजना के तहत एचएएल में ही बने थे। तब एक मिग विमान की लागत करीब 10 करोड़ आई थी लेकिन आज एक मिग 21 विमान की कीमत करीब 200-300 करोड़ रुपये आंकी जाती है। यह उसमें लगे हथियारों पर भी निर्भर करता है। यानी एक मिग हादसे की वायुसेना को भारी चपत लगती है। वहीं, एक पायलट को तैयार करने में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। साथ ही जान की क्षति भी अपूरणीय होती है।
अब तक 400 हादसे
अब तक 400 मिग हादसे हो चुके और 200 पायलट शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा इन हादसों की वजह से 50 से अधिक नागरिकों की जान जा चुकी है। इसीलिए इन विमानों को फ्लाइंग कॉफिन कहा जाने लगा है। अभी वायूसेना के पास 125 मिग विमान मौजूद हैं। वायुसेना के सूत्रों के मुताबिक, मिग-21 की चार स्क्वाड्रन अब भी वायुसेना के पास बची हुई हैं, जिसमें 65 मिग-21 विमान हैं। बाइसन विमानों की संख्या को मिलाकर करीब 125 मिग अभी भी मौजूद हैं। मिग-21 के करीब दस साल बाद शामिल किए गए मिग-27 विमानों को वायुसेना से फेजआउट किया जा चुका है। लेकिन मिग मजबूरी बने हुए हैं क्योंकि विमानों की कमी है। मिग-21 विमानों को फेज आउट करने की योजना बनी थी। 2014, 2017, 2019 तथा 2021 में भी बनी लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ।
180 लड़ाकू विमानों की तत्काल जरूरत
सूत्रों के अनुसार यदि वायुसेना मिग विमानों को हटाने का फैसला लेती है तो सीधे उसकी चार स्क्वाड्रन कम हो जाएगी। अभी 32 स्क्वाड्रन उसके पास हैं। एक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। यानी पहले ही 10 स्क्वाड्रन की कमी से वायुसेना जूझ रही है। यानी 180 लड़ाकू विमानों की तत्काल जरूरत है। 2025 तक वायुसेना को 83 तेजस विमान मिलने की उम्मीद है। 114 मल्टी मल्टीरोल विमानों की खरीद की प्रक्रिया शुरू की है।